५७.
चारों तरफ से बंद है
खिड़कियाँ और दरवाजे
रौशनी का परिंदा
पर नहीं मार सकता
मेरे अन्धकार युक्त
सुनसान आंगन में
सिसकते हुई मेरे बसंत में
कोई फूल नहीं खिल सकता
पंछी के कटे पर की तरह
पंख फर्फराता
उड़ने की हर कोशिश नाकाम हुआ
ऊँचे दीवारों के परे
मेरा विस्तृत आँगन है
मेरे हर प्रयास को ठेस लगा
हर भागीरथी प्रयत्न विफल हुआ
अपने आँगन को पाने में
इस कैद से मुक्ति नहीं
मुनादी करवादी गई है
फांसी की सजा बहाल हुई है
झूट का दीपक लेकर
रस्सी खोज रहे हैं लोग
सत्य का गला
है बिच चौराहे पर
आज उनको दबाना
बड़ा हंगामा सा है हुआ
कानाफूसी है हो रही
दबे जबान से कह रहे हैं
रस्सी नहीं मिल रही
फैसला बदल गया है
तेज धार से है
गला हलाल कर देना !
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