सोमवार, 19 मार्च 2012

52 . निर्धनता वह पाप है


५२.
निर्धनता वह पाप है
जो सब कुछ ग्रस लेता  है
भूल जाते हैं लोग
नैतिकता और आदर्श भी
खो देते हैं मस्तिष्क का संतुलन भी
रह कर आप जैसे भी
निकृष्ट वो कहलाते हैं
निर्धनता वह पाप है
जो सब कुछ ग्रस लेता है
निर्धनता वह पाप है
जो इन्सान को
जानवर से भी बदतर बना देता है
निर्धनता वह पाप है
जहाँ अस्मत भी
व्यापार बनता है
सब कुछ रह कर भी
निर्धनता मूल्य उसका ग्रस लेता है
जिन्दगी को जीने का अधिकार भी छीन लेता है |

सुधीर कुमार 'सवेरा' २०-०८-८३

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