२७४.
सत्य को व्यंग कह कर
लोग नकार देते हैं
असत्य को ही सत्य समझकर
लोग स्वीकार करते हैं
सरकार जनता को
अपंग समझकर हांक देती है
प्रशासन ईमानदारी को
बेबकूफी समझकर टाल देती है
मानवता की दुहाई देती है
वकील सच्ची कसमे खाकर
झूठ को सत्य करार देती है
नेता हर बार लोगों का पेट
वोट के लिए
बड़े - बड़े आश्वासनों से भर देती है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २७ - ०४ - १९८४
११ - १५ am कोलकाता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें