२७५.
चारों ओर व्याप्त भूमंडल पर
आत्मा सबों की मुमूर्ष हैं
अकोविद बांचता ज्ञान धर्म
सबको घेड़े प्रचंड व्याधि
मेरा - मेरा सब चिल्लाये
मेरा क्या ? जाने ना कोई
हो सभी पथ भ्रष्ट
करते आलोकित पथ
हो गयी विवेक शून्य
यह वसुंधरा
हो सोमवती
गिरा अपना वज्रदंड
दूर हो ये तमस्कांड !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २७ - ०४ - १९८४
१० - ३९ am कोलकाता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें