२८६.
मेरे बीते दिन को न छेड़
दफनाये अतीत को न कुरेद
कहानी वो खामोश होने दे
जिंदा लाशों के पात्रों के शिवा कुछ भी नहीं
हाय रे किस्मत
कहाँ गए वो दिन ?
मेरे अतीत के धुंधलके में
बेवफाईयां चमकते हैं सितारे बनके
मद्धिम सी रौशनी अब भी
मेरी उजड़ी हुई राहों का पता बताती है
राहें जो मेरी मंजिल की ओर जाती थी
अब उस मंजिल का ख्याल भी
शायद मेरे पास है नहीं
हाय रे वक्त
दिल ने फकत पहली वो तमन्ना की थी
पुरुस्कार में
अनगिनत दाग मेरे दिल पे पड़े
वाह मेरे महफूज सितमगर
वो मेरे अतीत के आवाजों
मेरे कानो तक न आओ
अतीत का नाम मेरे सामने ना दुहराओ
मेरे अतीत में
काबिले जिक्र कोई बात नहीं
छेड़ कर कहानी ऐसी
होगा क्या हासिल तुझे
जिस से इन्सान का दिल दुःख जाये
हाँ ये मुमकिन है
याद कर अपने अतीत को
अपने चेहरे को झुलस डालूं मैं
यारों इतना एहसान करो
मेरे अतीत की दबी राख रहने दो
अगरचे नामुमकिन नहीं
कोई चिंगारी उड़ जाये
और जिन्दगी के खलिहान में आग लगा दे
जिन्दगी अब भी गर खुशहाल नहीं
फिर भी अतीत से मेरे कहीं बेहतर है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २०- ०४ - १९८४
११ - ३० am
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