२९०.
चलती हैं आप सीना उभार के
पैरों में परे को ठोकर मार के
क्या आप ही एक जवाँ है
और कोई जवाँ नहीं ?
बाँकी दिल में कोई न अरमान रहे !
या रब इस दिल में वो लाखों बरस रहें !!
भींगे हुए बालों से जो झटका उसने पानी
झूम कर घटा छाई , टूट के बरसा पानी !!
मुझे तेरी आँखों से सदा सरोकार रहेगा !
जी कर भी दिल तो सदा बीमार रहेगा !!
याद उनकी जो आयी
बेगैरत से आँखों से आंसू निकल पड़े
मुद्द्त के बाद गुजरे जो हम उनके गली से !
सितम करने वाले क्या तुमको पता है !
मेरे दिल की दुनियां है वहीँ तूं जहाँ है !!
दिल को चुरा के खाक में मुझको मिला दिया !
जिन्दगी तो चार दिन की थी उसे भी जिन्दा जला दिया !
लोग कहते हैं रात बीत चुकी !
उन्हें समझाओ मैं शराबी नहीं !!
सबको अपनी ही सुनाने की पड़ी है !
मेरी कौन सुनेगा किसको मेरे सुनने की पड़ी है !!
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १९ - ०६ - १९८४
८ - २४ am
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