२७९.
सुधीर कुमार ' सवेरा '
धैर्य और सहन
हर सीमा का अतिक्रमण
सिले ओंठ
लिए जख्म
दर्द का उबाल
निकले भाप
बन गए
मेरे कविता के शब्द
आशा की अतृप्त प्यास
भटकन बनी है जिंदगी
असफलता की निरंतर प्राप्ति
उपहास बनी है जिंदगी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २८ - ०४ - १९८४
११ - २० am कोलकाता ०३ - ०५ - १९८४
९ - २२ am मिथिला एक्सप्रेस
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