२८३.
नभ के उर में बसती
बादलों की आह
मेरे आकाँक्षाओं की हर साँस में बसती
तेरे मधुर स्पर्श की चाह !
रूठना मेरे किस्मत को मेरे जिंदगी से था
रूठ जाओगी तुम मुझसे ये मालूम न था !
दरो दीवार पर मेरी नजरों ने तेरी तस्वीर बना दी थी !
एक हल्की सी चोट लगी
और शीशे की तरह दीवारें ढह गयी !!
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १९ - ०६ - १९८४
११ - ४५ am
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