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मेरी कविताओं में
मेरा अपनापन है
जो मैं हूँ
वो मेरी कवितायेँ हैं
कविता वो हैं
जो मैं हूँ
मैं ही हूँ
वो मेरी कविता
दुर्गम - दुर्गान्त
अगम - सुखांत
क्षत - विक्षत
आहत ह्रदय तक
आलाप - प्रलाप
अविकसित - अर्धखिली
सुवासित - पुष्पित
मैं जो किसी से न बोला
वह भी तुझ पे खोला
वो मेरे अन्तरंग
मेरे दुखों को
जितना तूँ जानेगा
दूसरा भला इसको
कैसे समझ पायेगा
तूँ बन मेरी राजदार
चलती रही साथ - साथ
कुछ भी तो तुझ से
न छुपा पाया मैंने
तूँ मेरी जिंदगी का आईना है
जब जैसा अक्श बना
तूने मुझे दिखलाया !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
मेरी कविताओं में
मेरा अपनापन है
जो मैं हूँ
वो मेरी कवितायेँ हैं
कविता वो हैं
जो मैं हूँ
मैं ही हूँ
वो मेरी कविता
दुर्गम - दुर्गान्त
अगम - सुखांत
क्षत - विक्षत
आहत ह्रदय तक
आलाप - प्रलाप
अविकसित - अर्धखिली
सुवासित - पुष्पित
मैं जो किसी से न बोला
वह भी तुझ पे खोला
वो मेरे अन्तरंग
मेरे दुखों को
जितना तूँ जानेगा
दूसरा भला इसको
कैसे समझ पायेगा
तूँ बन मेरी राजदार
चलती रही साथ - साथ
कुछ भी तो तुझ से
न छुपा पाया मैंने
तूँ मेरी जिंदगी का आईना है
जब जैसा अक्श बना
तूने मुझे दिखलाया !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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