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कलम अब रूठ सी जाती है
कागज तक इंक आते ही
सूख सी जाती है
जज्बात के ओठों तक आते ही
शब्दों के अर्थ खो से जाते हैं
आकाश का पानी
धरती तक आने से पहले ही
घुट सा जाता है
तूफां में किस्ती किनारे तक आने से पहले ही
टूट सा जाता है
रिश्तों का बंधन प्यार में बंधने से पहले ही
बिखर सा जाता है !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
कलम अब रूठ सी जाती है
कागज तक इंक आते ही
सूख सी जाती है
जज्बात के ओठों तक आते ही
शब्दों के अर्थ खो से जाते हैं
आकाश का पानी
धरती तक आने से पहले ही
घुट सा जाता है
तूफां में किस्ती किनारे तक आने से पहले ही
टूट सा जाता है
रिश्तों का बंधन प्यार में बंधने से पहले ही
बिखर सा जाता है !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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