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बहुत सारे शब्द अर्थहीन हो गए हैं
कुछ नष्ट कुछ भ्रष्ट हो गए हैं
कुछ शब्दों को तुम खा लो
कुछ शब्दों को तुम गाड़ दो
कुछ को अजायब घर पहुंचा दो
कुछ को गूँथ गले में टाँग लो
कुछ दीवारों पे चिपका दो
कुछ को ' मम्मी ' बनाकर रख लो
इन शब्दों को खुला मत छोडो
बड़े ही खतरनाक हैं ये शब्द
इन्हे भाषा के दीवारों में मत बांधो
मत वक्त दो इन शब्दों को
यूँ न तुम इन्हे खुला छोडो
वर्ना दोष न फिर मुझको देना
एक और वियतनाम और हिरोशिमा फिर बना देना
दोष है किसे किसका है दोष
दोषी कौन दोष कहाँ - कहाँ है
दोषी का फिर कौन है दोषी
दोषी दोष का फिर क्यों न हो दोष
दोष है दोषी दोष है उसका
दोष के दोषी को क्यों दोष न देगा
दोष है जिसका
क्यों नं कहेगा उसका
दोष के दोषी को तुम दोष न दोगे
खुद बन दोषी
निर्दोषों को दंड दोगे
यह कैसा दोष निवारण है तेरा
दोष उन्मूलन शब्द अकारण है तेरा
दोष के दोषी को तुम फिर
दण्ड न दे पाओगे
खुद अपने ही खून को
गलियों में बहाओगे
ये तेरे विकाश की है पहचान
या है तेरे अधोगति की निशान !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
३१ - ०५ - १९८५
०८ - ३० pm
बहुत सारे शब्द अर्थहीन हो गए हैं
कुछ नष्ट कुछ भ्रष्ट हो गए हैं
कुछ शब्दों को तुम खा लो
कुछ शब्दों को तुम गाड़ दो
कुछ को अजायब घर पहुंचा दो
कुछ को गूँथ गले में टाँग लो
कुछ दीवारों पे चिपका दो
कुछ को ' मम्मी ' बनाकर रख लो
इन शब्दों को खुला मत छोडो
बड़े ही खतरनाक हैं ये शब्द
इन्हे भाषा के दीवारों में मत बांधो
मत वक्त दो इन शब्दों को
यूँ न तुम इन्हे खुला छोडो
वर्ना दोष न फिर मुझको देना
एक और वियतनाम और हिरोशिमा फिर बना देना
दोष है किसे किसका है दोष
दोषी कौन दोष कहाँ - कहाँ है
दोषी का फिर कौन है दोषी
दोषी दोष का फिर क्यों न हो दोष
दोष है दोषी दोष है उसका
दोष के दोषी को क्यों दोष न देगा
दोष है जिसका
क्यों नं कहेगा उसका
दोष के दोषी को तुम दोष न दोगे
खुद बन दोषी
निर्दोषों को दंड दोगे
यह कैसा दोष निवारण है तेरा
दोष उन्मूलन शब्द अकारण है तेरा
दोष के दोषी को तुम फिर
दण्ड न दे पाओगे
खुद अपने ही खून को
गलियों में बहाओगे
ये तेरे विकाश की है पहचान
या है तेरे अधोगति की निशान !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
३१ - ०५ - १९८५
०८ - ३० pm
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