गुरुवार, 4 जून 2015

498 . सवाल ?

४९८ 
सवाल ?
जो है एक 
जिनके रूप अनेक 
उत्पति जिनका अनादि 
बुद्धि तत्त्व के साथ ही हुआ होगा प्रादुर्भाव 
सृष्टि प्रारम्भ से जो चला आ रहा 
पग - पग , पल - पल जो साथ रहा 
हम छूटे हों 
उसने साथ नहीं छोड़ा 
हम अनित्य हैं 
सवाल अनित्य हैं 
तभी तो बार - बार सामने आ जाते 
किसी न किसी मोड़ पे टकरा जाते 
जब सवाल उठता है 
कुछ तो जवाब मिलता ही है 
पर हम ने शायद 
सवालों को उठाना छोड़ दिया है 
एक अहम सवाल ?
यह शरीर है किसका ?
माता - पिता का झगड़ा 
यह है मेरा 
मैंने इसे उत्पन्न किया
पत्नी भला हक़ कैसे अपना छोड़े 
पुत्रों का तो कहना ही क्या 
प्रशासन भी पीछे नहीं 
गुरु का तो पूरा ही अधिकार है 
पर हाय रे शरीर 
कुत्ते गिद्ध कीड़े मकौड़े भी 
तुझपे हैं अधिकार जताते 
अग्नि का तो इसपे पूर्ण स्वामित्व है 
रोग कहते यह मेरा घर है 
फिर भी शायद हम 
हिचकते नहीं यह कहने में 
वह मेरा है 
जवाब ढूँढना है 
तथ्य खोजना है 
देखना है 
हमारा दावा कितना सच है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

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