ADHURI KAVITA SMRITI
रविवार, 28 जून 2015
510 . मूढ़ तूँ बहुत नादान रे
५१०
मूढ़ तूँ बहुत नादान रे
अपने को नहीं जाना रे
तूँ है कैसा ज्ञानधारी रे
देहाश्रित हो तूँ डूबा रे
माँ के अधीन होकर रे
जीवन कर अपना न्यारा रे
माँ करेगी बेड़ा उबारा रे !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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