( हमारा परिवार )
५०९
जीव तूँ अनादि है
भूलता क्यों माँ को
मोह मद में डूब कर
भूल गया खुद को
जो न था अपना
उसको तूँ अपना लिया
इन्द्रिय सुख में डूबा
खुद को बिसरा दिया
छोड़ इन बंधनों को
भज तूँ माँ को
जीव तूँ अनादि है
भूलता क्यों माँ को
अपना कर माँ मैंने
मिथ्या ज्ञान आचरण को
तीन लोक दिया खो
उपदेश थे जो हितकारी
पोंछ फेंका उनको पिछाड़ी
जीव तूँ अनादि है
भूलता क्यों माँ को !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
५०९
जीव तूँ अनादि है
भूलता क्यों माँ को
मोह मद में डूब कर
भूल गया खुद को
जो न था अपना
उसको तूँ अपना लिया
इन्द्रिय सुख में डूबा
खुद को बिसरा दिया
छोड़ इन बंधनों को
भज तूँ माँ को
जीव तूँ अनादि है
भूलता क्यों माँ को
अपना कर माँ मैंने
मिथ्या ज्ञान आचरण को
तीन लोक दिया खो
उपदेश थे जो हितकारी
पोंछ फेंका उनको पिछाड़ी
जीव तूँ अनादि है
भूलता क्यों माँ को !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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