मंगलवार, 23 जून 2015

506 . रे मन तूँ क्यों इतना भागे ?

५०६ 
रे मन तूँ क्यों इतना भागे ?
विषयों में क्यों तूँ इतना लागे ?
तेरे वश हो कब से भटका 
निज स्वरुप कभी देख न सका 
पराधीन हो तेरे दर - दर भटका 
दुर्गति विपत्ति खूब मैंने है भोगा 
फंस मैं अनेक विषयों कारणों में 
इन्द्रिय रसों को जी भर चखने में 
खुद को खुद से दूर भगाया 
नमन विषय वश पतंगा सा जलाया 
सब मानो को तजकर मैं माँ 
तेरे चरणों में हूँ अब ध्यान लगाया !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

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