३६२
जीवन की कगारें
एक एक कर
टूटती चली गयी
एक विश्वास
एक स्नेह
एक आस्था
एक अपनापन
मिलन की एक तरप
यादों के सुनहरे
ताने बाने
साथ जीने
साथ मरने की
एक अमर चाह
सब बिखर गयी
रह गयी मात्र
एक न
ख़त्म होने वाली आह
प्यार को
उसने मारकर
विश्वासघात कर
सुनहरा चादर ओढ़कर
पूछा तक नहीं
बनी उसके
प्यार की कब्र कहाँ
हा नियती
करता हूँ प्रणाम तुझे
ऐसे विपदाओं को
देकर भी यूँ
दे देते हो
ना जाने
कैसी शक्ति
मरने की जगह
जी रहे हैं
रोने की जगह
हँस रहे हैं
हाँ प्रकृति
तूँ ही विश्वास
तूँ ही विश्वासघात
तूँ ही सच
तूँ ही झूठ
अच्छा हुआ तूने मुझे दर्द दिया
झोली उसकी खुशियों से भर दी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २२ - ०८ - १९८४
५ - ३० pm
जीवन की कगारें
एक एक कर
टूटती चली गयी
एक विश्वास
एक स्नेह
एक आस्था
एक अपनापन
मिलन की एक तरप
यादों के सुनहरे
ताने बाने
साथ जीने
साथ मरने की
एक अमर चाह
सब बिखर गयी
रह गयी मात्र
एक न
ख़त्म होने वाली आह
प्यार को
उसने मारकर
विश्वासघात कर
सुनहरा चादर ओढ़कर
पूछा तक नहीं
बनी उसके
प्यार की कब्र कहाँ
हा नियती
करता हूँ प्रणाम तुझे
ऐसे विपदाओं को
देकर भी यूँ
दे देते हो
ना जाने
कैसी शक्ति
मरने की जगह
जी रहे हैं
रोने की जगह
हँस रहे हैं
हाँ प्रकृति
तूँ ही विश्वास
तूँ ही विश्वासघात
तूँ ही सच
तूँ ही झूठ
अच्छा हुआ तूने मुझे दर्द दिया
झोली उसकी खुशियों से भर दी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २२ - ०८ - १९८४
५ - ३० pm
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