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ये शय तेरी
बहुत बुरी है ' सवेरा '
बेवफाई जिसने तुझ से की
याद सीने में उसकी दबाये घुमा करते हो
वाह ' सवेरा '
सुबह की लाली देख कर
फूल तूने खिलाये
आँसुओं से भरे
रात की सारी कालीमाओं
दामन में अपने समेट लिया
ऐसी ही हसरत थी तो
क्यों न गला अपना दबा लिया
सुगंध भी हूँ तो तेरे ही बाग का
दुर्गन्ध भी हूँ तो तेरे ही बाग का
जब तूने जैसा नीर पटाया
गंध मैंने तब वैसा ही फैलाया
है पास नहीं कुछ मेरे
फिर भी खूब लुटाता हूँ
भूखे तृप्त हो कर जाते हैं
घट जिनका है भरा हुआ
पेट उनका भी मैं भरता हूँ !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १४ - १० - १९८४
ये शय तेरी
बहुत बुरी है ' सवेरा '
बेवफाई जिसने तुझ से की
याद सीने में उसकी दबाये घुमा करते हो
वाह ' सवेरा '
सुबह की लाली देख कर
फूल तूने खिलाये
आँसुओं से भरे
रात की सारी कालीमाओं
दामन में अपने समेट लिया
ऐसी ही हसरत थी तो
क्यों न गला अपना दबा लिया
सुगंध भी हूँ तो तेरे ही बाग का
दुर्गन्ध भी हूँ तो तेरे ही बाग का
जब तूने जैसा नीर पटाया
गंध मैंने तब वैसा ही फैलाया
है पास नहीं कुछ मेरे
फिर भी खूब लुटाता हूँ
भूखे तृप्त हो कर जाते हैं
घट जिनका है भरा हुआ
पेट उनका भी मैं भरता हूँ !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १४ - १० - १९८४
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