३६३
ऊँची लहर
और एक तूफान का गुजरना
खामोश जुबान
और निगाहों से कुछ कहना
हर वर्तमान में
अतीत का यूँ झलकना
खामोश मन
आत्मा का सिसकना
राहे सफ़र में
यूँ तनहा गुजरना
हर झूठी आशा पे
जीवन का यूँ लटकना
वादों के खातिर
भविष्य का बाट जोहना
झूठ के थपकियों से
सच को सुलाना
हर नवीन धोखे से
जी को यूँ बहलाना
दर्द के हाथों से
खुशियों को लुटाना
कब किसने वफ़ा किया
कह गए सब
जालिम है ये जमाना
डूबते का क्या दामन थामा
अपना भी बन गया एक फ़साना
बेमतलब का ये जमाना
भला इसको क्या मनाना !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०६ - ०९ - १९८४
१२ - ५० pm
ऊँची लहर
और एक तूफान का गुजरना
खामोश जुबान
और निगाहों से कुछ कहना
हर वर्तमान में
अतीत का यूँ झलकना
खामोश मन
आत्मा का सिसकना
राहे सफ़र में
यूँ तनहा गुजरना
हर झूठी आशा पे
जीवन का यूँ लटकना
वादों के खातिर
भविष्य का बाट जोहना
झूठ के थपकियों से
सच को सुलाना
हर नवीन धोखे से
जी को यूँ बहलाना
दर्द के हाथों से
खुशियों को लुटाना
कब किसने वफ़ा किया
कह गए सब
जालिम है ये जमाना
डूबते का क्या दामन थामा
अपना भी बन गया एक फ़साना
बेमतलब का ये जमाना
भला इसको क्या मनाना !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०६ - ०९ - १९८४
१२ - ५० pm
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