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दिमाग अपना गगरी
मिजाज अपना पगड़ी
बात तो व्यक्तिगत ही है
और यह आज से नहीं
आदिकाल से है
क्या तूँ मनुष्य नहीं
मनुष्य है तो अकेला है
अकेला है तो व्यक्तिगत है
सो नहीं तो समझ ले
तूँ मनुष्य ही नहीं
गर्मी बहुत हो
तो पीस - पीस कर पियो जीरा
पर ठंढे का इलाज नहीं
भले बिछा लो चारों तरफ हीरा
सवालों का सिलसिला
मौन का वातावरण तैयार करता
खामोश जुबान
निगाहों से बात करता
अतिशय कुरूपता में
सुंदरता का सार छिपा होता
अतिशय सुंदरता में
कुरूपता का अंश झलकता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३१ - १० १९८४
दिमाग अपना गगरी
मिजाज अपना पगड़ी
बात तो व्यक्तिगत ही है
और यह आज से नहीं
आदिकाल से है
क्या तूँ मनुष्य नहीं
मनुष्य है तो अकेला है
अकेला है तो व्यक्तिगत है
सो नहीं तो समझ ले
तूँ मनुष्य ही नहीं
गर्मी बहुत हो
तो पीस - पीस कर पियो जीरा
पर ठंढे का इलाज नहीं
भले बिछा लो चारों तरफ हीरा
सवालों का सिलसिला
मौन का वातावरण तैयार करता
खामोश जुबान
निगाहों से बात करता
अतिशय कुरूपता में
सुंदरता का सार छिपा होता
अतिशय सुंदरता में
कुरूपता का अंश झलकता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३१ - १० १९८४
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