शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

367 . वाह ' सवेरा '

३६७ 
वाह ' सवेरा ' 
बहुत हँसी है 
तेरे जिंदगी का अँधेरा 
जिसने तुझे दगा दिया 
जिंदगी में देख उसके 
चारों और है उजाला 
तूँ कह पाये या न 
जमाना तो कह लेगा ही 
उस जानम को बेवफ़ा 
सच ' सवेरा ' 
क्या जादू है प्यार में 
नजरों के रास्ते 
उतरता है दिल में 
फिर समाती ही चली जाती है 
शरीर की आत्मा में 
यह भी देखा 
जो मैं करता था सुना 
भर देता है वक्त 
जख्म हो कितना भी बड़ा  
पर प्यार का जख्म 
भरता नहीं शायद 
मर कर भी कभी 
वक्त कहने को 
कुछ कम नहीं गुजरे 
मेरे चेहरे से 
आवाजों से 
शायद अक्श धूमिल पर गए हों 
उस बेइंतिहा प्यार के 
पर मिट नही पाये हैं 
गहरे जख्म उस प्यार के 
सोंचता है दिल कभी कभी 
गुजर जाती है 
लम्बी जिंदगानी जिस कदर 
प्यार के क्षणों में पल बन कर 
दूभर हो जाता है उसी कदर 
मज़बूरी में सम्बन्ध निभाना पल भर !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १९ - १० - १९८४ 
१२ - ४५ pm 

कोई टिप्पणी नहीं: