मंगलवार, 27 जनवरी 2015

378 .दिल तोड़ कर मेरा अपनों के बीच भी रहोगे तनहा

३७८ 
दिल तोड़ कर मेरा अपनों के बीच भी रहोगे तनहा ,
हर बेवफा तेरी तरह खुश नहीं होता !

दुश्मन की खैर हो मेरी जान का क्या ,
लाखों बार मर कर भी उनके लिए ही जिए हैं !

सोंच समझ कर सब कुछ मिटा दिया ,
किसके लिए जिए थे किसके लिए मरे थे सब भुला दिया

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

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