378 .दिल तोड़ कर मेरा अपनों के बीच भी रहोगे तनहा
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दिल तोड़ कर मेरा अपनों के बीच भी रहोगे तनहा ,
हर बेवफा तेरी तरह खुश नहीं होता !
दुश्मन की खैर हो मेरी जान का क्या ,
लाखों बार मर कर भी उनके लिए ही जिए हैं !
सोंच समझ कर सब कुछ मिटा दिया ,
किसके लिए जिए थे किसके लिए मरे थे सब भुला दिया
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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