ADHURI KAVITA SMRITI
शनिवार, 2 मई 2015
466 . प्रशंसनीय तुम कर्म करो
४६६
प्रशंसनीय तुम कर्म करो
मत चाहो पाना प्रशंसा
अन्यथा मन में उपजेगी
औरों के प्रति हिंसा
क्या यह देगा तुझको शोभा ?
क्यों उपजाते मन में अहंकार का पौधा !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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