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माँ काली
मारा तुमने मधु कैटभ
क्यों न हरती मेरा कष्ट
विषय वासनाओं के मधु पर
भटक रहा मेरा तन मन
कितने असुर मेरे मन में
कितने बसते मेरे तन में
राग द्वेष की ज्वाला में
रह न पाती बुद्धि वश में
काले भुजंग की नैया
लगती मुझको शीतल शैया
कैसे पहुँचाऊँ तुझ तक
व्यथा कथा मैं दीन - हीना
ओ ! कृपालु करुणामयी माँ
राह मैं तेरी तकूँ
कण - कण में तुझको निहारूं
एक भ्रम एक वहम
मेरे अंतर में हो उपजाती
मेरे ये मधु कैटभ माँ
अब तुम्ही इन्हे सम्भालो
अपने चरणो में मुझे लगालो !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
माँ काली
मारा तुमने मधु कैटभ
क्यों न हरती मेरा कष्ट
विषय वासनाओं के मधु पर
भटक रहा मेरा तन मन
कितने असुर मेरे मन में
कितने बसते मेरे तन में
राग द्वेष की ज्वाला में
रह न पाती बुद्धि वश में
काले भुजंग की नैया
लगती मुझको शीतल शैया
कैसे पहुँचाऊँ तुझ तक
व्यथा कथा मैं दीन - हीना
ओ ! कृपालु करुणामयी माँ
राह मैं तेरी तकूँ
कण - कण में तुझको निहारूं
एक भ्रम एक वहम
मेरे अंतर में हो उपजाती
मेरे ये मधु कैटभ माँ
अब तुम्ही इन्हे सम्भालो
अपने चरणो में मुझे लगालो !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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