487 . क्या जीना क्या मरना
४८७
क्या जीना क्या मरना
बस एक खेल यह
जो है चलता रहता
निर्वाध निरंतर सर्वदा सतत
एक चोला बदलने सा
नूतन वस्त्र पहनने सा
फिर उत्कंठा यह कैसी ?
किससे क्या है लेना
माँ का यह खेल
खेले वह खेले हम
चलती रहे माँ की रेल
चरणों में सदा रहें हम !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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