ADHURI KAVITA SMRITI
शनिवार, 16 मई 2015
486 . आना - जाना , जीना - मरना
४८६
आना - जाना , जीना - मरना
दुनियाँ का काम पुराना
हम क्यों डरें भला ?
आत्मा है , हमारा सत्यरूप
हम हैं सदा अविनाशी
डरते क्यों महाकाल के भूप !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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