गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

30. सपनो का महल बनाया कई बार


30-

सपनो का महल बनाया कई बार 
बनते - बनते टूट गया हर बार 
हारा हूँ न हिम्मत अपना 
चाहे सजा दे कितना भी ज़माना 
मैं देखता रहूँगा सपना
क्यों छोड़ूं उस छण का आनंद 
कर लूँ क्यों उससे आँखे बंद 
चाहे हो सके न वो अपना 
मैं देखता रहूँगा सपना   
सपनो का महल बनाया कई बार 
बनते - बनते टूट गया हर बार 
वो सपने हैं तो सपने 
फिर भी दिल को लगते 
सच्चे , अच्छे , अपने !

सुधीर कुमार ' सवेरा '          31-०३-१९८० 

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