बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

13. तुम हो स्वछन्द


13-

तुम हो स्वछन्द 
करते हो मंद - मंद विचरण 
पर मैं कर्तव्यों की जंजीर से बंधा 
क्या कर पाऊंगा तेरा ही आचरण ?
नीले -  नीलगगन 
तेरे ही हैं घर आँगन 
पर मैं संकीर्णता से घिरा 
क्या कर पाऊंगा मंगल गायन ?
      सारे उपवन और चमन 
तेरे ही हैं कुल भवन 
क्या तुझे भी है कोई बन्दिस ?
या कोई नियम की बाध्यता ?
  धन्य हैं तेरे भाग्य 
करते हो उन्मुक्त विहार 
पर मैं तुझ से जलता नहीं 
तुम ही तो हो मेरे मीत
पहुँचती है मिलती है 
जिस से प्रीति संदेस  ।


सुधीर कुमार ' सवेरा '          १६-०२-१९८० 

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