13-
तुम हो स्वछन्द
करते हो मंद - मंद विचरण
पर मैं कर्तव्यों की जंजीर से बंधा
क्या कर पाऊंगा तेरा ही आचरण ?
नीले - नीलगगन
तेरे ही हैं घर आँगन
पर मैं संकीर्णता से घिरा
क्या कर पाऊंगा मंगल गायन ?
सारे उपवन और चमन
तेरे ही हैं कुल भवन
क्या तुझे भी है कोई बन्दिस ?
या कोई नियम की बाध्यता ?
धन्य हैं तेरे भाग्य
करते हो उन्मुक्त विहार
पर मैं तुझ से जलता नहीं
तुम ही तो हो मेरे मीत
पहुँचती है मिलती है
जिस से प्रीति संदेस ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १६-०२-१९८०
तुम हो स्वछन्द
करते हो मंद - मंद विचरण
पर मैं कर्तव्यों की जंजीर से बंधा
क्या कर पाऊंगा तेरा ही आचरण ?
नीले - नीलगगन
तेरे ही हैं घर आँगन
पर मैं संकीर्णता से घिरा
क्या कर पाऊंगा मंगल गायन ?
सारे उपवन और चमन
तेरे ही हैं कुल भवन
क्या तुझे भी है कोई बन्दिस ?
या कोई नियम की बाध्यता ?
धन्य हैं तेरे भाग्य
करते हो उन्मुक्त विहार
पर मैं तुझ से जलता नहीं
तुम ही तो हो मेरे मीत
पहुँचती है मिलती है
जिस से प्रीति संदेस ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १६-०२-१९८०
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