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अगल - बगल नहीं - नहीं चारों तरफ
फ़ेंक रहा है वो पत्थर
बिच सड़क पर खड़ा होकर
लोग आ रहे हैं जा रहे हैं
लोग डर गये हैं
गुम शुम देख रहे हैं
किसी बच्चे ने उसे पत्थर है मारा
देखो - देखो हंसने लगा
चुप चुप वो रोने लगा
वस्त्र हैं तन पर
पर नहीं हैं
वो अंग हैं खुले हुये
देखो - देखो हम सा ही है वो
पर पागल है कहलाता
क्या उसे दर्द नहीं होता
होगी तो उसकी भी कोई माँ
कभी वह भी तो था दूध पीता
हो प्रकृति के वशीभूत
है हम से अलग - थलग पड़ा
आहटें उसकेलिए थम गई हैं
भावनाएं उसकी बहक गई हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०७-०३-१९८०
अगल - बगल नहीं - नहीं चारों तरफ
फ़ेंक रहा है वो पत्थर
बिच सड़क पर खड़ा होकर
लोग आ रहे हैं जा रहे हैं
लोग डर गये हैं
गुम शुम देख रहे हैं
किसी बच्चे ने उसे पत्थर है मारा
देखो - देखो हंसने लगा
चुप चुप वो रोने लगा
वस्त्र हैं तन पर
पर नहीं हैं
वो अंग हैं खुले हुये
देखो - देखो हम सा ही है वो
पर पागल है कहलाता
क्या उसे दर्द नहीं होता
होगी तो उसकी भी कोई माँ
कभी वह भी तो था दूध पीता
हो प्रकृति के वशीभूत
है हम से अलग - थलग पड़ा
आहटें उसकेलिए थम गई हैं
भावनाएं उसकी बहक गई हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०७-०३-१९८०
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