14-
कहो - कहो ऐ दोस्तों
कौन देता है हमें जीवन ?
हम का मतलब है हर
चाहे हो राष्ट्रपति चाहे हो कलर्क
कहो - कहो ऐ दोस्तों
मानव की कौन सी है वो पहली आवश्यकता ?
जिसके बिना न रह सकती ये मानव की व्यवस्था
जिसके लिए हर कोई बहाता है खून पसीना
कितनो की जिन्दगी रह जाती
उसी में है उलझकर
कितने पहुँच जाते सुरधाम उसी के कारण
जिसके बिना है फीका हर सुख और साधन
है उसी की कमी - है उसी की कमी
इस देश में यारों
मिलती न सही ढंग से
इस देश में यारों
मिलती न सही ढंग से
हर किसी को यारों
सुनो - सुनो ऐ दोस्तों
भोजन है ओ चीज
जिसे चाहे सभी गरीब और अमीर
हमारी तीन आवश्यकतायें
हैं रोटी कपड़ा और मकान
जिसके बाद ही बढती है किसी की शान
पर देख आज उसकी हालत
आई है उस पर ये कैसी आफत
विदीर्ण होती कलेजा हमार
न मिलती है सही बीज और सिंचाई
स्नो पाउडर से भी बढ़कर
हुई है जिसकी कीमत में खिंचाई
हर किसान हर खाद नहीं ले सकता खुलेआम
लेने के लिए भी है नहीं उसके पास पुरे दाम
है प्यारा सा एक नाम ' गरीब किसान '
धरती माता का ओ बेटा
जो सींचता है खून पसीने से जमीं को
धुप और बारिस जो सहता है जिंदगी भर
देखो उसे भी नहीं मिलता है पेट भर
सस्ते दामों पर ख़रीदे जाते हैं उसके अन्न
जिसके कारण है उसका वस्त्र विहीन तन
जाकर मिलो उससे कितना साफ है उसका मन
उसे ही चुरा कर बना रहे हैं कितने काला धन
इसे ही देख कर रो रहा है मेरा मन
सोंचो तो क्या होगा अंजामे वतन ?
जिस देश का अन्नदाता ही होगा भूखा नंगा
चरों तरफ हो भ्रस्टाचारी - कालाबाजारी का धंधा
होगी भला क्यों नहीं उस देश में विकलता
उरेंगे चारों तरफ गीध बनेगी श्मशान ये गंगा
जब तक न भरेगा पेट उनका
होगी न जब तक खाद , बीज और सिंचाई की व्यवस्था
सुधरेगी न कभी हमारी ये अर्थव्यवस्था
गाँवों का ये देश तब - तक न होगा खुशहाल
जब तक हैं हमारे किसान फटेहाल
समझो - समझो मेरे दोस्तों
ये बात है समझने की न नारों की न शोर - शराबों की
करनी होगी हमें सस्ते बीज , खाद और सिंचाई की व्यवस्था
होगी हमारी मिलेगी तभी हमें
हमारी सबसे बड़ी सफलता
इसी में है निहित सबों की कुशलता
छेर दो जिहाद खाओ कसम
हमारा होगा यही सबसे पहला कदम
सबों की हो ये ही पुकार
पहले किसान - पहले किसान
तभी हो पायेगा देश का उत्थान ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २८-०२-१९८०
कहो - कहो ऐ दोस्तों
कौन देता है हमें जीवन ?
हम का मतलब है हर
चाहे हो राष्ट्रपति चाहे हो कलर्क
कहो - कहो ऐ दोस्तों
मानव की कौन सी है वो पहली आवश्यकता ?
जिसके बिना न रह सकती ये मानव की व्यवस्था
जिसके लिए हर कोई बहाता है खून पसीना
कितनो की जिन्दगी रह जाती
उसी में है उलझकर
कितने पहुँच जाते सुरधाम उसी के कारण
जिसके बिना है फीका हर सुख और साधन
है उसी की कमी - है उसी की कमी
इस देश में यारों
मिलती न सही ढंग से
इस देश में यारों
मिलती न सही ढंग से
हर किसी को यारों
सुनो - सुनो ऐ दोस्तों
भोजन है ओ चीज
जिसे चाहे सभी गरीब और अमीर
हमारी तीन आवश्यकतायें
हैं रोटी कपड़ा और मकान
जिसके बाद ही बढती है किसी की शान
पर देख आज उसकी हालत
आई है उस पर ये कैसी आफत
विदीर्ण होती कलेजा हमार
न मिलती है सही बीज और सिंचाई
स्नो पाउडर से भी बढ़कर
हुई है जिसकी कीमत में खिंचाई
हर किसान हर खाद नहीं ले सकता खुलेआम
लेने के लिए भी है नहीं उसके पास पुरे दाम
है प्यारा सा एक नाम ' गरीब किसान '
धरती माता का ओ बेटा
जो सींचता है खून पसीने से जमीं को
धुप और बारिस जो सहता है जिंदगी भर
देखो उसे भी नहीं मिलता है पेट भर
सस्ते दामों पर ख़रीदे जाते हैं उसके अन्न
जिसके कारण है उसका वस्त्र विहीन तन
जाकर मिलो उससे कितना साफ है उसका मन
उसे ही चुरा कर बना रहे हैं कितने काला धन
इसे ही देख कर रो रहा है मेरा मन
सोंचो तो क्या होगा अंजामे वतन ?
जिस देश का अन्नदाता ही होगा भूखा नंगा
चरों तरफ हो भ्रस्टाचारी - कालाबाजारी का धंधा
होगी भला क्यों नहीं उस देश में विकलता
उरेंगे चारों तरफ गीध बनेगी श्मशान ये गंगा
जब तक न भरेगा पेट उनका
होगी न जब तक खाद , बीज और सिंचाई की व्यवस्था
सुधरेगी न कभी हमारी ये अर्थव्यवस्था
गाँवों का ये देश तब - तक न होगा खुशहाल
जब तक हैं हमारे किसान फटेहाल
समझो - समझो मेरे दोस्तों
ये बात है समझने की न नारों की न शोर - शराबों की
करनी होगी हमें सस्ते बीज , खाद और सिंचाई की व्यवस्था
होगी हमारी मिलेगी तभी हमें
हमारी सबसे बड़ी सफलता
इसी में है निहित सबों की कुशलता
छेर दो जिहाद खाओ कसम
हमारा होगा यही सबसे पहला कदम
सबों की हो ये ही पुकार
पहले किसान - पहले किसान
तभी हो पायेगा देश का उत्थान ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २८-०२-१९८०
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