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हम बढ़ते जा रहे हैं
एक दूसरी गुलामी में
जकड़ते जा रहे हैं
हर बार की खुशामद के बाद
हम सिर्फ आह भरते जा रहे हैं
पर लोग इस गुलामी के दिवार को
बेहद मजबूत बनाते जा रहे हैं
होगी एक बड़ी खुनी क्रांति
पलट जायेगी तब सारी बात पुरानी
न रह जाएगा तब मैं और तुम
बस रहेंगे केवल हम ही हम
न कोई आश्रित कहलायेगा
न कोई निराश्रित कहलायेगा
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय
के भाव से तब
सभी जी पायेंगे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ११-०७-१९८०
हम बढ़ते जा रहे हैं
एक दूसरी गुलामी में
जकड़ते जा रहे हैं
हर बार की खुशामद के बाद
हम सिर्फ आह भरते जा रहे हैं
पर लोग इस गुलामी के दिवार को
बेहद मजबूत बनाते जा रहे हैं
होगी एक बड़ी खुनी क्रांति
पलट जायेगी तब सारी बात पुरानी
न रह जाएगा तब मैं और तुम
बस रहेंगे केवल हम ही हम
न कोई आश्रित कहलायेगा
न कोई निराश्रित कहलायेगा
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय
के भाव से तब
सभी जी पायेंगे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ११-०७-१९८०
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