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गाँव से भागा शहर की ओर
सुना बहुत है उधर आजादी और मौज
इस वीरानी में सुस्ती सी छा रही थी
विरानेपन से मन उब सी गई थी
बचपन के ओ अच्छे - अच्छे दृश्यावलियाँ
उन पर भी छा गई थी विरानियाँ
जिन्दगी एक सी बातों से
उब सी गई थी
मन कुछ बदलाव देखने को
मचल रही थी
द्रुत गति से दौड़ती गाड़ियां
गग्गन चुम्बी ओ इमारतें
चौड़ी - चौड़ी सड़कों को
चाहती हैं ये पावें नापने को
दो मंजिल ऊँची बसें
धुंआ उगलता शहर
देखने को बड़ा चाहता था मन
सब कुछ देखा
स्वर्ग सा शहर
परियों का नगर
पर वो न देखा वो न पाया
जो मिलती थी वहां के बड़े बच्चों से
वहां की धरती से
प्यार की वो सोंधी महक !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०६-०३-१९८०
गाँव से भागा शहर की ओर
सुना बहुत है उधर आजादी और मौज
इस वीरानी में सुस्ती सी छा रही थी
विरानेपन से मन उब सी गई थी
बचपन के ओ अच्छे - अच्छे दृश्यावलियाँ
उन पर भी छा गई थी विरानियाँ
जिन्दगी एक सी बातों से
उब सी गई थी
मन कुछ बदलाव देखने को
मचल रही थी
द्रुत गति से दौड़ती गाड़ियां
गग्गन चुम्बी ओ इमारतें
चौड़ी - चौड़ी सड़कों को
चाहती हैं ये पावें नापने को
दो मंजिल ऊँची बसें
धुंआ उगलता शहर
देखने को बड़ा चाहता था मन
सब कुछ देखा
स्वर्ग सा शहर
परियों का नगर
पर वो न देखा वो न पाया
जो मिलती थी वहां के बड़े बच्चों से
वहां की धरती से
प्यार की वो सोंधी महक !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०६-०३-१९८०
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