24-
कंही धूप कंही छाँव
कहीं दौर कहीं ठांव
ये है गाँव s s s s s s
कहीं कोठा कहीं फूस
कहीं पहुँच कहीं घूस
कहीं धूप ..............
जितने ही अपने उतने ही दूर
जैसे गग्गन धरा से दूर
मिलती कहीं नजर आती बहुत दूर
कहीं मछली कहीं जाल
कहीं ढोल कहीं ताल
कहीं नदिया कहीं घाट
कहीं नाव कहीं पाल
कहीं धूप ..................
कहीं ऊँच कहीं नीच
ठौर नहीं है इन दोनों के बिच
कहीं घुर कहीं ताव
कहीं झूठ कहीं सांच
कहीं भूख कहीं नाच
कहीं कोठी कहीं चूल्हा भी फूटी
कहीं हुआ कहीं कांव
कहीं धूप कहीं छाँव ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १२-०६-१९८०
कंही धूप कंही छाँव
कहीं दौर कहीं ठांव
ये है गाँव s s s s s s
कहीं कोठा कहीं फूस
कहीं पहुँच कहीं घूस
कहीं धूप ..............
जितने ही अपने उतने ही दूर
जैसे गग्गन धरा से दूर
मिलती कहीं नजर आती बहुत दूर
कहीं मछली कहीं जाल
कहीं ढोल कहीं ताल
कहीं नदिया कहीं घाट
कहीं नाव कहीं पाल
कहीं धूप ..................
कहीं ऊँच कहीं नीच
ठौर नहीं है इन दोनों के बिच
कहीं घुर कहीं ताव
कहीं झूठ कहीं सांच
कहीं भूख कहीं नाच
कहीं कोठी कहीं चूल्हा भी फूटी
कहीं हुआ कहीं कांव
कहीं धूप कहीं छाँव ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १२-०६-१९८०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें