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शांत बहुत शांत
कहीं दूर बेहद एकांत
चल पथिक चल दे वहीं
छाई हो जहाँ निस्तब्धता
गुफाओं कंदराओं से लौटकर
आती आवाज
मौन अति गंभीर
सागर की भीषण गर्जना
मात्र यही सिखलायेंगी तुझको मानवता
चल पथिक चल दे वहीँ
छाई हो जहाँ पूरी निस्तब्धता
नहीं संकुचित नहीं कृपणता
रहस्यों की है वहीँ व्यापकता
छाई हो जहाँ घोर निस्तब्धता
क्यों सोंच वृथा है करता
वहीं मिलेगी वहीं मिलेगी
तुझको तेरी वास्तविकता
वहीं बुझेगी - वहीं बुझेगी
तेरी चीर प्यास वहीं बुझेगी
प्रकृति का प्यार मिलेगा
वहीं तुझको तेरा राज मिलेगा
ले - ले -ले - ले जाकर
अपने जीवन की सार्थकता ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३०-०५-१९८०
शांत बहुत शांत
कहीं दूर बेहद एकांत
चल पथिक चल दे वहीं
छाई हो जहाँ निस्तब्धता
गुफाओं कंदराओं से लौटकर
आती आवाज
मौन अति गंभीर
सागर की भीषण गर्जना
मात्र यही सिखलायेंगी तुझको मानवता
चल पथिक चल दे वहीँ
छाई हो जहाँ पूरी निस्तब्धता
नहीं संकुचित नहीं कृपणता
रहस्यों की है वहीँ व्यापकता
छाई हो जहाँ घोर निस्तब्धता
क्यों सोंच वृथा है करता
वहीं मिलेगी वहीं मिलेगी
तुझको तेरी वास्तविकता
वहीं बुझेगी - वहीं बुझेगी
तेरी चीर प्यास वहीं बुझेगी
प्रकृति का प्यार मिलेगा
वहीं तुझको तेरा राज मिलेगा
ले - ले -ले - ले जाकर
अपने जीवन की सार्थकता ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३०-०५-१९८०
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