बुधवार, 5 दिसंबर 2012
शुक्रवार, 30 नवंबर 2012
187 . बिखर गया जब एक - एक पौधा
187 .
बिखर गया जब एक - एक पौधा
चमन रहा बाँकी कहाँ
उजड़ गया जब चमन ही सारा
खुशबु लुटाये कौन
एक बेचारा चाहत में सबके
रो - रो दिन असुवन के काटे
रातें यादों से
फूल खिले वहाँ कैसे
गम के काँटे जहाँ बढ़े
बंजर जमीन से पानी की चाहत
सिवाय तृष्णा के
होगी ये कौन सी बाबत
मिली जब खाख में मोहब्बत
जीने की ये आफ़त
आकर बता जाती है हकिकत
चाँदी की कुछ परत
चढ़ा जाती है मुलम्मा
बन जाती है ये जफा का दरख़्त
तेरी बेवफाई के बाद भी
न जाने मिटती नहीं क्यों तेरी चाहत ?
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 09-02-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
बुधवार, 28 नवंबर 2012
184 . कुछ न भाता कुछ न सुहाता
184 .
कुछ न भाता कुछ न सुहाता
ह्रदय पर निराशा छाया रहता
दर - दर मन भटकता रहता
गम का प्याला भरता रहता
मज़बूरी का बोझ है बढ़ता
आशा का दीप है बुझता
जिन्दगी दूर होती सी लगती
मौत करीब आ रही लगता
मैं जग से दूर होता जा रहा
जग मुझसे दूर
दिन जा रहा है ढ़लता
शाम गहराती जा रही
चाँद जा रहा है छिपता
बादल फैलती जा रही
सभी हँसते हैं मैं रहा रोता
सोना भी न सुहाता
इच्छा यही करता रहता
चार आँखें कर लूँ
मोहब्बत कर मुख तुम्हारी चूम लूँ
तड़प - तड़प कर रहता हूँ
किसी से कुछ न कहता हूँ
सिर्फ तुम्हे ही अर्ज अपना हूँ सुनाता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 29-01-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
सोमवार, 26 नवंबर 2012
182 . जिन्दगी को बहुत करीब से मैंने देखा है
182 .
जिन्दगी को बहुत करीब से मैंने देखा है
तुझे हर पल में हम और तुम का फर्क करते देखा है
कई बार हो चुके हैं दिलों के टुकड़े
पर वक्त के साथ जख्मों को भरते देखा है
हर को समझ ज़माने का साथ दिया
मतलब निकाल अपना हर को भागते देखा है
मरते हैं सभी एक न एक दिन
सबों को एक दिन रोते देखा है
मैं मरा नहीं हूँ अब तक
पर हर क्षण अपने आपको अपने सामने मरते देखा है
पला हूँ गरीबी में रहा नहीं कभी अमीरी में
ज़माने ने भी बेहद सताया है
महाजनों को भी आँखे दिखाते देखा है
होकर बेकसूर सही है बेइज्जती मैंने
अपनी हर मज़बूरी पर सबको हँसते देखा है
बड़ी मुश्किल से जिन्दगी में किसी का प्यार आया
तभी से उसको चाहा जब से उसे देखा है
उधर भी तभी से चाह थी
जब से उसने मुझे देखा है
देखी गयी न ये भी बात ज़माने को
अपने प्यार में भी ज़माने को आग लगाते देखा है
दिल थे टूटे जब तक तो जुटते भी थे
पर इस बार दिल को चूर - चूर होते देखा है
' सवेरा ' न कभी हारा था न कभी हारेगा
अपने को हरदम हँसते पाया था पायेगा
पढ़ के ' सवेरा ' के इस हाशिये को
हर के आँखों में झूठी सहानभूति को देखा है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-02-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
रविवार, 25 नवंबर 2012
गुरुवार, 22 नवंबर 2012
180 . कोई कोई नागिन समान होती है नारी
180 .
कोई कोई नागिन समान होती है नारी
कठोर वक्ष पत्थर दिल नीरस हों जिसके प्राण
शब्द स्पर्श से पिघले न जिसके प्राण
बना देती जीवन को हलाहल
कर देती वो सर्वनाश
कर ताण्डव नृत्य वो
फिर भी न पाती चैन
कर देती भंग दूसरों का शील
चुकता करती भावुकता का मूल्य
तन मन भी क्यों न देतें हों झोंक !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
चित्र गूगल के सौजन्य से
कोई कोई नागिन समान होती है नारी
कठोर वक्ष पत्थर दिल नीरस हों जिसके प्राण
शब्द स्पर्श से पिघले न जिसके प्राण
बना देती जीवन को हलाहल
कर देती वो सर्वनाश
कर ताण्डव नृत्य वो
फिर भी न पाती चैन
कर देती भंग दूसरों का शील
चुकता करती भावुकता का मूल्य
तन मन भी क्यों न देतें हों झोंक !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
चित्र गूगल के सौजन्य से
बुधवार, 21 नवंबर 2012
शनिवार, 17 नवंबर 2012
178 . भूलों की एक याद
178 .
भूलों की एक याद
यादों की एक भूल
मन में भरती रहती है एक टीस
प्रिया की याद
यादों की बौछार
उसपे ये तन्हाई का आलम
और ये सावन की बहार
एक वर्ष बीते
युग जीते
पाया सुख हर सिंगार
तब कहीं थे
आज कहीं हैं
पर होगा हर जन्म में
ये बार - बार
राखी का त्यौहार
मिला न बहना का प्यार
बंजारे की जिन्दगी
फूल खिली नहीं
मुरझा जायेगी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 04-08-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से
भूलों की एक याद
यादों की एक भूल
मन में भरती रहती है एक टीस
प्रिया की याद
यादों की बौछार
उसपे ये तन्हाई का आलम
और ये सावन की बहार
एक वर्ष बीते
युग जीते
पाया सुख हर सिंगार
तब कहीं थे
आज कहीं हैं
पर होगा हर जन्म में
ये बार - बार
राखी का त्यौहार
मिला न बहना का प्यार
बंजारे की जिन्दगी
फूल खिली नहीं
मुरझा जायेगी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 04-08-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से
177 . इस तन्हाई का ये तन्हा
177 .
इस तन्हाई का ये तन्हा
लगता है इक अपना
जीवन में है एक
बस उम्मिदों का सपना
बहुत चाहता हूँ कहना
कैसे कहूँ
जब एहसास तुम्हारी होती है
तुम लगती हो बिलकुल अपना
ऐसे लगता है जैसे
छू लिए हों तुझे
खोता हूँ जब याद में तेरे
होती हो उस वक्त बाहों में मेरे
चूम लेता हूँ तुझको किस कदर
कैसे कहूँ
होती हो कितने पास तुम
होकर भी दूर इतनी
ये कैसे कहूँ
साँस से साँस टकरा जाती है
दो धड़कने भी एक हो जाती है
फिज़ा भी कैसे बहक जाती है
ये कैसे कहूँ
बह रही है बयार
या तेरे बालों की खुशबु की है महक !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 23-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
इस तन्हाई का ये तन्हा
लगता है इक अपना
जीवन में है एक
बस उम्मिदों का सपना
बहुत चाहता हूँ कहना
कैसे कहूँ
जब एहसास तुम्हारी होती है
तुम लगती हो बिलकुल अपना
ऐसे लगता है जैसे
छू लिए हों तुझे
खोता हूँ जब याद में तेरे
होती हो उस वक्त बाहों में मेरे
चूम लेता हूँ तुझको किस कदर
कैसे कहूँ
होती हो कितने पास तुम
होकर भी दूर इतनी
ये कैसे कहूँ
साँस से साँस टकरा जाती है
दो धड़कने भी एक हो जाती है
फिज़ा भी कैसे बहक जाती है
ये कैसे कहूँ
बह रही है बयार
या तेरे बालों की खुशबु की है महक !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 23-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
बुधवार, 14 नवंबर 2012
176 . दुनियाँ वालों सुन लो तुम भी
176 .
दुनियाँ वालों सुन लो तुम भी
एक दिवाना हूँ मैं भी
चाहे इधर
चाहे उधर
तुम देखो जिधर
मैं आऊं नज़र उधर ही उधर
चाहो या न चाहो सुनो तुम भी
दिल की है एक दास्ताँ मेरी भी
खाता हूँ
पीता हूँ
मौज मस्ती से
जिन्दगी बसर अपना करता हूँ
पर दिले दर्द की है एक टीस मेरी भी
एक ही है मेरी जान मेरी जिन्दगी भी
नाम से जिसके
मधु का स्वाद
माँ का प्यार
दोनों ही परिलक्षित होता है
अब ओ बिछर गया है मुझ से
पर आशा है मिलेगी कभी न कभी
यादों में ख्यालों में
बसती है वो
मेरी हर साँसों में
समझो न
देखो न
मुझसे दूर
तुम जाओ ना
हो जाओगी दूर अगर तुम भी
क्या रह पाऊंगा जिन्दा फिर भी
एक नज़र
इस तरफ
देखो तो
कितनी है तड़प
तेरे प्यार में हो जाऊँगा दीवाना भी
पर तुझको क्या खबर हो पाएगी तब भी
एक तमन्ना
एक आरजू
एक ख्वाहिस
एक मिन्नत
एक फरियाद सुनो भी
एक बार तो आ जाओ भी
मेरे महल से
मेरे बगल से
मेरे दरो दिवार से
मेरे हर जर्रे - जर्रे से
तेरा ही नाम तेरी ही छाया
देखने को पढने को मिलेगी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 23-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
दुनियाँ वालों सुन लो तुम भी
एक दिवाना हूँ मैं भी
चाहे इधर
चाहे उधर
तुम देखो जिधर
मैं आऊं नज़र उधर ही उधर
चाहो या न चाहो सुनो तुम भी
दिल की है एक दास्ताँ मेरी भी
खाता हूँ
पीता हूँ
मौज मस्ती से
जिन्दगी बसर अपना करता हूँ
पर दिले दर्द की है एक टीस मेरी भी
एक ही है मेरी जान मेरी जिन्दगी भी
नाम से जिसके
मधु का स्वाद
माँ का प्यार
दोनों ही परिलक्षित होता है
अब ओ बिछर गया है मुझ से
पर आशा है मिलेगी कभी न कभी
यादों में ख्यालों में
बसती है वो
मेरी हर साँसों में
समझो न
देखो न
मुझसे दूर
तुम जाओ ना
हो जाओगी दूर अगर तुम भी
क्या रह पाऊंगा जिन्दा फिर भी
एक नज़र
इस तरफ
देखो तो
कितनी है तड़प
तेरे प्यार में हो जाऊँगा दीवाना भी
पर तुझको क्या खबर हो पाएगी तब भी
एक तमन्ना
एक आरजू
एक ख्वाहिस
एक मिन्नत
एक फरियाद सुनो भी
एक बार तो आ जाओ भी
मेरे महल से
मेरे बगल से
मेरे दरो दिवार से
मेरे हर जर्रे - जर्रे से
तेरा ही नाम तेरी ही छाया
देखने को पढने को मिलेगी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 23-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
175 . रिश्ता अपना ढूंढ़ रहा हूँ
175 .
रिश्ता अपना ढूंढ़ रहा हूँ
मिल जाये कहीं कोई सहारा
गुजरा वक्त न बन जाऊं
कागज़ पे लिखी स्याही न बन जाऊं
बन जाऊं मैं कोई बसेरा
दिल के चमन में फूल खिले प्यार के
पतझड़ भी लग जाये गले बहार के
बह जाए सब ओर पवन प्यार के
दुश्मन भी लग जाए गले प्यार से
मिले मुझे भी प्यार अपने प्यार से
टूट - टूट कर कर कितनी बार दिल जुडा है मुश्किल से
इसे फिर न तोड़ना तुम इनकार से
गर हो कोई शिकवा गिला
कह दो मुझे प्यार से !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 04-03-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
रिश्ता अपना ढूंढ़ रहा हूँ
मिल जाये कहीं कोई सहारा
गुजरा वक्त न बन जाऊं
कागज़ पे लिखी स्याही न बन जाऊं
बन जाऊं मैं कोई बसेरा
दिल के चमन में फूल खिले प्यार के
पतझड़ भी लग जाये गले बहार के
बह जाए सब ओर पवन प्यार के
दुश्मन भी लग जाए गले प्यार से
मिले मुझे भी प्यार अपने प्यार से
टूट - टूट कर कर कितनी बार दिल जुडा है मुश्किल से
इसे फिर न तोड़ना तुम इनकार से
गर हो कोई शिकवा गिला
कह दो मुझे प्यार से !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 04-03-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
174 . मैं बहुत सहता हूँ
174 .
मैं बहुत सहता हूँ
तुझसे डरता हूँ
ना जाने क्यों
तुम मुझसे प्यार करती हो या नहीं
मैं जानता नहीं
पर मैं तुझसे बेहद प्यार करता हूँ
ना जाने क्यों
मेरे तम तीमिर दूर हो जाते हैं
याद तुम्हारी आने से
तुम हो मेरी ऐसा ही समझता हूँ
ना जाने क्यों
क्या मैं तुम्हे कभी याद आता हूँ ?
मैं भी तुम्हे अच्छा लगता हूँ
मैं हरदम तेरे याद में रहता हूँ
ना जाने क्यों ?
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 04-03-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
मैं बहुत सहता हूँ
तुझसे डरता हूँ
ना जाने क्यों
तुम मुझसे प्यार करती हो या नहीं
मैं जानता नहीं
पर मैं तुझसे बेहद प्यार करता हूँ
ना जाने क्यों
मेरे तम तीमिर दूर हो जाते हैं
याद तुम्हारी आने से
तुम हो मेरी ऐसा ही समझता हूँ
ना जाने क्यों
क्या मैं तुम्हे कभी याद आता हूँ ?
मैं भी तुम्हे अच्छा लगता हूँ
मैं हरदम तेरे याद में रहता हूँ
ना जाने क्यों ?
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 04-03-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
शुक्रवार, 9 नवंबर 2012
172 . कोरे बालू के जमीन पर
172 .
कोरे बालू के जमीन पर
लकीर खिंच गया कोई
अनछुई बालू ने
खिल कर ली अंगराई
उमंग भरा उल्लास जगा
जग की रीत भी भुलाई
भूल गयी सारी बातें
यौवन मद में डूब गयी
कुछ नहीं आता था नज़र
ऐसे में ही सावन आई
अभी - अभी यौवन ने ली थी अंगराई
बरस गया घमंडी बादल
लेकर बदला गर्मी का
प्यास बुझी नहीं बालू की
तपती हुई थी पूरी धरती
और अगन सी लग गयी
चिरकाल तक रहेगा बरसता सावन
बालू ने अपने मन में सोंची
पर बादल फटा बिजली कड़की
बाँट गया बादल को दो आधा
अब आसमान साफ़ था
मिट गया नामो निंसा बादल का
अब उस भींगी बालू के जमीन को
हुआ न ऐसा विश्वास कभी
रो - रो कर आँसू सुखाये
तप्त बनाली खुद को ऐसी
फ़िजा भी गर्म हो गयी उससे
खुद को तोड़ ली हर ओर से
ऐसे में आया एक हिम खंड
पर दरार न बालू का मिटा पाया
बालू को हर पल
बादल का ही अक्श नज़र आता था
पर हुआ एक दिन यों
हिम खंड ने अपनी ठंढक खो दी
लांघ गया मर्यादा को
खुद को पश्चाताप की आग में
झुलसाने के लिए
हिम खंड भी गल कर
जाएगा जब मिट
कोई और नया शिला खंड आएगा
गड़ कर बालू में खुद
एक नया सहारा देगा
बन कर मिल का पत्थर
' पथिक ' को राह बतलायेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 06-07-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से
कोरे बालू के जमीन पर
लकीर खिंच गया कोई
अनछुई बालू ने
खिल कर ली अंगराई
उमंग भरा उल्लास जगा
जग की रीत भी भुलाई
भूल गयी सारी बातें
यौवन मद में डूब गयी
कुछ नहीं आता था नज़र
ऐसे में ही सावन आई
अभी - अभी यौवन ने ली थी अंगराई
बरस गया घमंडी बादल
लेकर बदला गर्मी का
प्यास बुझी नहीं बालू की
तपती हुई थी पूरी धरती
और अगन सी लग गयी
चिरकाल तक रहेगा बरसता सावन
बालू ने अपने मन में सोंची
पर बादल फटा बिजली कड़की
बाँट गया बादल को दो आधा
अब आसमान साफ़ था
मिट गया नामो निंसा बादल का
अब उस भींगी बालू के जमीन को
हुआ न ऐसा विश्वास कभी
रो - रो कर आँसू सुखाये
तप्त बनाली खुद को ऐसी
फ़िजा भी गर्म हो गयी उससे
खुद को तोड़ ली हर ओर से
ऐसे में आया एक हिम खंड
पर दरार न बालू का मिटा पाया
बालू को हर पल
बादल का ही अक्श नज़र आता था
पर हुआ एक दिन यों
हिम खंड ने अपनी ठंढक खो दी
लांघ गया मर्यादा को
खुद को पश्चाताप की आग में
झुलसाने के लिए
हिम खंड भी गल कर
जाएगा जब मिट
कोई और नया शिला खंड आएगा
गड़ कर बालू में खुद
एक नया सहारा देगा
बन कर मिल का पत्थर
' पथिक ' को राह बतलायेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 06-07-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से
गुरुवार, 8 नवंबर 2012
171. आज बहुत तेरी याद सतायी है
171 .
आज बहुत तेरी याद सतायी है
सुबह से फुहारों की झड़ी लगी है
बिछुरने के बाद समझा
होता है प्यार क्या ?
बिछुरन का दर्द
दुश्मन को भी न मिले कभी
मेरे साँसों में बसी है
तेरे प्यार की खुशबु
ये बाहें तरपी हैं
गिन - गिन कर रातों को
गुजरा है दिन
गिन - गिन कर वादों को
पर मैं खुश हूँ
क्योंकि तुम खुश हो
दूर रहकर मुझसे तो चैन हो
अब तो न कहता होगा
कोई भी खुशामद से
एक मिट्ठी दो ना
न होती होगी अब मुझ से तंग
सोती होगी चैन की नींद
न कोई देता होगा ताना
न कसता होगा कोई फिकरा
देखो ! देखो !
मैं हूँ खुश कितना
न होता होगा अब तुम्हे
कोई शाररिक या आत्मिक कष्ट
बस एक ही बात
सताता है हर बार
प्यार किया तुझसे
तुझे बेइंतिहा दिल बुलाता है
जब भी भूलने की कोशिश करता हूँ
तेरी याद सताती है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 24-06-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से
आज बहुत तेरी याद सतायी है
सुबह से फुहारों की झड़ी लगी है
बिछुरने के बाद समझा
होता है प्यार क्या ?
बिछुरन का दर्द
दुश्मन को भी न मिले कभी
मेरे साँसों में बसी है
तेरे प्यार की खुशबु
ये बाहें तरपी हैं
गिन - गिन कर रातों को
गुजरा है दिन
गिन - गिन कर वादों को
पर मैं खुश हूँ
क्योंकि तुम खुश हो
दूर रहकर मुझसे तो चैन हो
अब तो न कहता होगा
कोई भी खुशामद से
एक मिट्ठी दो ना
न होती होगी अब मुझ से तंग
सोती होगी चैन की नींद
न कोई देता होगा ताना
न कसता होगा कोई फिकरा
देखो ! देखो !
मैं हूँ खुश कितना
न होता होगा अब तुम्हे
कोई शाररिक या आत्मिक कष्ट
बस एक ही बात
सताता है हर बार
प्यार किया तुझसे
तुझे बेइंतिहा दिल बुलाता है
जब भी भूलने की कोशिश करता हूँ
तेरी याद सताती है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 24-06-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से
शुक्रवार, 2 नवंबर 2012
170 . है उपासना ऐसी
170 .
है उपासना ऐसी
सदा लगता है
हो अपने पास बैठी
सदा साथ रहता है
मन में तेरे साँसों का एहसास
लिखी है दास्ताँ दिल ने
सुनाई जा नहीं सकती
दर्द के दास्ताँ से
याद भुलाई जा नहीं सकती
बहुत चाहा सुनाना
दास्ताने दर्दे दिल महफ़िल में
मगर दिल पर गया है
आज बेतहासा मुश्किल में
जो एहसास दिल ने किया
जुबाँ बयाँ कर नहीं सका
जो बयाँ कर सकता
उसे एहसास ही नहीं हुआ
दिया है जिसने जानो जिस्म
हँस कर इस ज़माने को
पीया गम जिन्दगी भर ही
ज़माने को हँसाने को
कहानी प्यार की उसकी
आसानी से भुलाई जा नहीं सकती
कलेजा चीर कर भी रख दूँ
तो भी जख्मे जिगर
दिखाई जा नहीं सकती
प्यार ने उठाई है वो मुसीबत
जो बिसराई जा नहीं सकती
दे मृदु प्यार का आश्रय
थकी हारी जवानी को
बनाया गीत का नगमा
हारती हर कहानी को
कहानी त्याग की तेरी भी
झुठाई जा नहीं सकती
हुआ पुरुषार्थ बुढा तो
बनी उसका सहारा तुम
न कर पाओगी बुरे दिनों में
मुझसे कभी किनारा तुम
ज़माने में मिसाल तेरी
भुलाई जा नहीं सकती
वही ममता मयी नारी
अनूठे प्रेम की प्रतिमा
दहकते नरक को
जन्नत बनाने की सहज गरिमा
उन एहसानों की दौलत
कभी भी लुटाई जा नहीं सकती
तूने मेरे सब्र का
इंतकाल कर दिया है
पर मैंने अपने जीवन को
खुद ही नरक बना दिया है
फिर भी तेरा असीम प्यार
दिल से मिटाई जा नहीं सकती
समझ में आता नहीं
तेरे उपकारों का बदला
कैसे चुकाना है
तेरे हर चोट को
दिल में संजो कर रखना है
सुधा को धार तो
विष की पिलाई जा नहीं सकती
अगर मैं ही नहीं तेरा सम्मान कर पाए
अगर जो कुछ बलिदान न कर पाए
बिना इसके प्यार के
अमर बनाई जा नहीं सकती !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 22-06-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से
है उपासना ऐसी
सदा लगता है
हो अपने पास बैठी
सदा साथ रहता है
मन में तेरे साँसों का एहसास
लिखी है दास्ताँ दिल ने
सुनाई जा नहीं सकती
दर्द के दास्ताँ से
याद भुलाई जा नहीं सकती
बहुत चाहा सुनाना
दास्ताने दर्दे दिल महफ़िल में
मगर दिल पर गया है
आज बेतहासा मुश्किल में
जो एहसास दिल ने किया
जुबाँ बयाँ कर नहीं सका
जो बयाँ कर सकता
उसे एहसास ही नहीं हुआ
दिया है जिसने जानो जिस्म
हँस कर इस ज़माने को
पीया गम जिन्दगी भर ही
ज़माने को हँसाने को
कहानी प्यार की उसकी
आसानी से भुलाई जा नहीं सकती
कलेजा चीर कर भी रख दूँ
तो भी जख्मे जिगर
दिखाई जा नहीं सकती
प्यार ने उठाई है वो मुसीबत
जो बिसराई जा नहीं सकती
दे मृदु प्यार का आश्रय
थकी हारी जवानी को
बनाया गीत का नगमा
हारती हर कहानी को
कहानी त्याग की तेरी भी
झुठाई जा नहीं सकती
हुआ पुरुषार्थ बुढा तो
बनी उसका सहारा तुम
न कर पाओगी बुरे दिनों में
मुझसे कभी किनारा तुम
ज़माने में मिसाल तेरी
भुलाई जा नहीं सकती
वही ममता मयी नारी
अनूठे प्रेम की प्रतिमा
दहकते नरक को
जन्नत बनाने की सहज गरिमा
उन एहसानों की दौलत
कभी भी लुटाई जा नहीं सकती
तूने मेरे सब्र का
इंतकाल कर दिया है
पर मैंने अपने जीवन को
खुद ही नरक बना दिया है
फिर भी तेरा असीम प्यार
दिल से मिटाई जा नहीं सकती
समझ में आता नहीं
तेरे उपकारों का बदला
कैसे चुकाना है
तेरे हर चोट को
दिल में संजो कर रखना है
सुधा को धार तो
विष की पिलाई जा नहीं सकती
अगर मैं ही नहीं तेरा सम्मान कर पाए
अगर जो कुछ बलिदान न कर पाए
बिना इसके प्यार के
अमर बनाई जा नहीं सकती !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 22-06-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से
सोमवार, 29 अक्टूबर 2012
169 . ख्वाबों की दुनियाँ
169 .
ख्वाबों की दुनियाँ
एक हम और एक तुम हैं
एक छोटा सा बंगला है
सामने समुद्र की लहरें हैं
और एक छोटी सी कार है
छोटी सी एक फुलवाड़ी है
जिसमें फूल हैं अनेक
थोड़ा सा बैंक बैलेंस है
घर में एक नौकर है
इस दुनियाँ का
मैं राजा और तूँ मेरी रानी है
अब
दृश्य बदलता है
किलकारियाँ गूँज उठती हैं
हम दो से तीन होते हैं
समय गुजरता चला जाता है
वो बढ़ता है खूब पढता है
होकर बड़ा अफसर बनता है
बालों से हम सफ़ेद हो रहे हैं
पर तुम उतनी ही सुन्दर हो
हमारे मिलन की
25वीं सालगिरह है
एक सुन्दर सी राजकुमारी आ गयी
अपने लड़के सुधाकर ने
किया बड़ा नाम है
हम दोनों का उसने
किया बड़ा नाम है
और अब दृश्य बदलता है
हम पोती को तुम पोते को
गोद में खिलाते हैं
अब आया वो भी समय
तुम ने मुझसे चिर विदा ले ली है
अगले जन्म में मिलने का वादा कर
और मैं इसी जन्म में
ना जाने कितनी बार मरता रहा
मेरे इस जीने से तो मौत ही भली है
अच्छा अब ये जीना लगता नहीं है
पर कैसी ये मज़बूरी है
मौत भी मिलती नहीं है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
ख्वाबों की दुनियाँ
एक हम और एक तुम हैं
एक छोटा सा बंगला है
सामने समुद्र की लहरें हैं
और एक छोटी सी कार है
छोटी सी एक फुलवाड़ी है
जिसमें फूल हैं अनेक
थोड़ा सा बैंक बैलेंस है
घर में एक नौकर है
इस दुनियाँ का
मैं राजा और तूँ मेरी रानी है
अब
दृश्य बदलता है
किलकारियाँ गूँज उठती हैं
हम दो से तीन होते हैं
समय गुजरता चला जाता है
वो बढ़ता है खूब पढता है
होकर बड़ा अफसर बनता है
बालों से हम सफ़ेद हो रहे हैं
पर तुम उतनी ही सुन्दर हो
हमारे मिलन की
25वीं सालगिरह है
एक सुन्दर सी राजकुमारी आ गयी
अपने लड़के सुधाकर ने
किया बड़ा नाम है
हम दोनों का उसने
किया बड़ा नाम है
और अब दृश्य बदलता है
हम पोती को तुम पोते को
गोद में खिलाते हैं
अब आया वो भी समय
तुम ने मुझसे चिर विदा ले ली है
अगले जन्म में मिलने का वादा कर
और मैं इसी जन्म में
ना जाने कितनी बार मरता रहा
मेरे इस जीने से तो मौत ही भली है
अच्छा अब ये जीना लगता नहीं है
पर कैसी ये मज़बूरी है
मौत भी मिलती नहीं है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
रविवार, 28 अक्टूबर 2012
168 . जन्म लेना बनकर इन्सान
168 .
जन्म लेना बनकर इन्सान
होता नहीं इतना आसान
बहुत सुकर्मों के उपरांत
पाता यह नर तन है
नारायण भी रहते हैं
जिसके लिए सदा तरसते
सबकुछ पाकर भी वे
दैहिक सुख नहीं पा सकते
पाकर इतना अनमोल धन
व्यर्थ करती हो कलुषित मन
भोगों की है यह नगरी
भोगोगे तुम भी आज ये वचन दो
आत्महत्या जैसी इक्षा
करते हैं बुजदिल इन्सान ही
हर आघातों को हँस कर
सहने से ही इन्सान बनता है महान
करो कल्पना हर पल
एक नए नूतन नव विहान की
हर पल उत्तमता की करो आशा
आशाओं पर ही है जिन्दगी इन्सान की
मुझे दे दो वो हँसी की फुलझड़ी
थी जो तूँ हर पल बिखेरती
मुझे दे दो वो नटखट युवती
जो थी चंचल शोख बड़ी
मुझे लौटा दो वो चुलबुल चितवन
जो थी तेरे चेहरे पर जड़ी
मुझ से करो जिद हर बात की
जो थी तेरी आदत पड़ी
मुझे लौटा दो वो युवती
जो थी हरदम हँसती हँसाती
दुःख थे जिसके ठोकरों में
लौटा दो मेरी वो चिर - परिचित
मेरी अपनी मेरी प्रीत
तोड़ दो उन बंधनों को
जो तेरी आत्मा का हनन करते
तोड़ दो उन बेड़ियों को
जो बेड़ी बन कर तुझे जकड़ते
भुला दो उन रिश्तों को
जो तेरे सत्य के आड़े आते
न कहने की नींव डालो
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
अत्याचार के खिलाफ
आवाज दो आवाज दो
तुम आजाद हो
तुम इन्सान हो
तुम्हे अधिकार है
अपनी इक्षा के अनुकूल जीने का
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
छेड़ो जेहाद
कसमों को न तोड़ने की
खाओ कसमे
तुम जिओगी अपने ढंग से
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
हम आजाद हैं
हमें जीना है
हम इन्सान हैं
हम आजाद हैं
हमारी अपनी ख़ुशी है
हमारी अपनी जिन्दगी है
नाचेंगे गायेंगे
खुशियाँ मनायेंगे
हम इन्सान हैं
हम आजाद हैं
तुम आजाद हो
आओ आओ
बाहें पसारे
खुशहाली तेरे दर पे
है कब से खड़ी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 06-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
जन्म लेना बनकर इन्सान
होता नहीं इतना आसान
बहुत सुकर्मों के उपरांत
पाता यह नर तन है
नारायण भी रहते हैं
जिसके लिए सदा तरसते
सबकुछ पाकर भी वे
दैहिक सुख नहीं पा सकते
पाकर इतना अनमोल धन
व्यर्थ करती हो कलुषित मन
भोगों की है यह नगरी
भोगोगे तुम भी आज ये वचन दो
आत्महत्या जैसी इक्षा
करते हैं बुजदिल इन्सान ही
हर आघातों को हँस कर
सहने से ही इन्सान बनता है महान
करो कल्पना हर पल
एक नए नूतन नव विहान की
हर पल उत्तमता की करो आशा
आशाओं पर ही है जिन्दगी इन्सान की
मुझे दे दो वो हँसी की फुलझड़ी
थी जो तूँ हर पल बिखेरती
मुझे दे दो वो नटखट युवती
जो थी चंचल शोख बड़ी
मुझे लौटा दो वो चुलबुल चितवन
जो थी तेरे चेहरे पर जड़ी
मुझ से करो जिद हर बात की
जो थी तेरी आदत पड़ी
मुझे लौटा दो वो युवती
जो थी हरदम हँसती हँसाती
दुःख थे जिसके ठोकरों में
लौटा दो मेरी वो चिर - परिचित
मेरी अपनी मेरी प्रीत
तोड़ दो उन बंधनों को
जो तेरी आत्मा का हनन करते
तोड़ दो उन बेड़ियों को
जो बेड़ी बन कर तुझे जकड़ते
भुला दो उन रिश्तों को
जो तेरे सत्य के आड़े आते
न कहने की नींव डालो
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
अत्याचार के खिलाफ
आवाज दो आवाज दो
तुम आजाद हो
तुम इन्सान हो
तुम्हे अधिकार है
अपनी इक्षा के अनुकूल जीने का
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
छेड़ो जेहाद
कसमों को न तोड़ने की
खाओ कसमे
तुम जिओगी अपने ढंग से
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
हम आजाद हैं
हमें जीना है
हम इन्सान हैं
हम आजाद हैं
हमारी अपनी ख़ुशी है
हमारी अपनी जिन्दगी है
नाचेंगे गायेंगे
खुशियाँ मनायेंगे
हम इन्सान हैं
हम आजाद हैं
तुम आजाद हो
आओ आओ
बाहें पसारे
खुशहाली तेरे दर पे
है कब से खड़ी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 06-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
शनिवार, 27 अक्टूबर 2012
167 . दो चार जख्म खाया हूँ
167 .
दो चार जख्म खाया हूँ
तो आज आठ - आठ आंसू बहाया हूँ
सोंचा था बहुत समझदार हूँ
तो आज मालुम हुआ
मैं बेहद कायर हूँ
गैरत ही जब नहीं पास मेरे
क्यों मुझ से प्यार किया ?
गर थी यह तेरी कोई मज़बूरी
तो जाओ तुम्हे आजाद किया
मैं सह लेता हूँ सब कुछ
पर अपनों के शब्द नहीं सह सकता हूँ
सह लेता तेरे थप्पड़ भी
जी लेता तेरे नफ़रत से भी
पर गर्व है तुझे जिन शब्दों पर
वो ही मैं सह नहीं सकता हूँ
जब स्वाभिमान ही नहीं पास मेरे
तो क्यों मुझ से प्यार किया
जाओ तुझे आजाद किया
जीने की आकाँक्षा
मर चुकी थी पहले ही
मिलकर तूने शायद
कुछ क्षण के लिए लौ बढाया
थी नहीं तमन्ना कोई
बनी भी तो अब दफ़न किया
इज्जत नहीं पास जिसके
क्यों मुझ से प्यार किया
थी गर कोई मज़बूरी
तो जाओ तुझे आजाद किया
एक बात समझ लो तुम भी
हर बिमारी की जड़ है गरीबी
और गरीबी से हूँ मैं त्रस्त
कभी भी हो सकता है
मेरे जीवन सूर्य का अस्त
फिर क्यों मुझ से प्यार किया
नहीं चूका पाऊँगा एहसान तेरा
जो ही क्षण तूने जिलाया
मत बहो कोरी भावना में
इस हेतु यथार्थ से परिचय करवाया
मेरे जिंदी मौत पे
मत कभी दुःखी होना
जो था मेरा वही तूने वापस किया
तुम अपने को वज्र कहती हो
पर मैं बहुत कोमल हूँ
मैं बहुत कुछ सह लेता हूँ
पर अपनों के शब्द नहीं सह पाता हूँ
मेरे जमीर को जगा कर
तूने बहुत बड़ा काम किया
कहता हूँ तेरे भले के लिए
मेरे हर लेख को मिटा दो
तेरे भविष्य के लिए
ऐसा न हो मैं काला धब्बा बन जाऊं
तेरे जमीर के लिए
जान बुझ कर पाँव में कुल्हारी मारना
तुझ जैसे समझदार को शोभा नहीं देता
जानकर यथार्थ को
मुझ जैसे को ठुकराना कोई पाप नहीं होगा
मुझे झुलस - झुलस कर जीने की आदत है
पर खुद को मत झुलसाओ
आजाद हो तुम
अपना नया संसार बनाओ
मुझ अभागे का आंसू पोंछकर
खुद क्यों आंसू पियोगी
कहना बहुत है आसान रहना भूखों
पर पेट की ज्वाला देती है झुलसा
सारी मान मर्यादा
फिर मैं क्यों अपनी अमावास से
दुसरे का उजाला छीनूँ
मैं जीता था पहले जैसे
वैसे ही अब जिऊंगा
फिर से हर पल
मौत से बातें करूँगा
निराशा और गम के साँसें भरूँगा
मज़बूरी और गरीबी का नाम जपूँगा
जिल्लत और दुत्कार से पेट भरूँगा
बसंत के दस साल गुजार लिए
बहुत कम काटने को है अब बचा
मरना तो है ही एक दिन
फिर क्यों एक पल भी
जीने की आशा करूँगा
तुम खुश रहो सदा
हर ख़ुशी है तुम्हारे लिए
छोड़ दो सारे गम आंसुओं को
हमारे लिए !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 01-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
दो चार जख्म खाया हूँ
तो आज आठ - आठ आंसू बहाया हूँ
सोंचा था बहुत समझदार हूँ
तो आज मालुम हुआ
मैं बेहद कायर हूँ
गैरत ही जब नहीं पास मेरे
क्यों मुझ से प्यार किया ?
गर थी यह तेरी कोई मज़बूरी
तो जाओ तुम्हे आजाद किया
मैं सह लेता हूँ सब कुछ
पर अपनों के शब्द नहीं सह सकता हूँ
सह लेता तेरे थप्पड़ भी
जी लेता तेरे नफ़रत से भी
पर गर्व है तुझे जिन शब्दों पर
वो ही मैं सह नहीं सकता हूँ
जब स्वाभिमान ही नहीं पास मेरे
तो क्यों मुझ से प्यार किया
जाओ तुझे आजाद किया
जीने की आकाँक्षा
मर चुकी थी पहले ही
मिलकर तूने शायद
कुछ क्षण के लिए लौ बढाया
थी नहीं तमन्ना कोई
बनी भी तो अब दफ़न किया
इज्जत नहीं पास जिसके
क्यों मुझ से प्यार किया
थी गर कोई मज़बूरी
तो जाओ तुझे आजाद किया
एक बात समझ लो तुम भी
हर बिमारी की जड़ है गरीबी
और गरीबी से हूँ मैं त्रस्त
कभी भी हो सकता है
मेरे जीवन सूर्य का अस्त
फिर क्यों मुझ से प्यार किया
नहीं चूका पाऊँगा एहसान तेरा
जो ही क्षण तूने जिलाया
मत बहो कोरी भावना में
इस हेतु यथार्थ से परिचय करवाया
मेरे जिंदी मौत पे
मत कभी दुःखी होना
जो था मेरा वही तूने वापस किया
तुम अपने को वज्र कहती हो
पर मैं बहुत कोमल हूँ
मैं बहुत कुछ सह लेता हूँ
पर अपनों के शब्द नहीं सह पाता हूँ
मेरे जमीर को जगा कर
तूने बहुत बड़ा काम किया
कहता हूँ तेरे भले के लिए
मेरे हर लेख को मिटा दो
तेरे भविष्य के लिए
ऐसा न हो मैं काला धब्बा बन जाऊं
तेरे जमीर के लिए
जान बुझ कर पाँव में कुल्हारी मारना
तुझ जैसे समझदार को शोभा नहीं देता
जानकर यथार्थ को
मुझ जैसे को ठुकराना कोई पाप नहीं होगा
मुझे झुलस - झुलस कर जीने की आदत है
पर खुद को मत झुलसाओ
आजाद हो तुम
अपना नया संसार बनाओ
मुझ अभागे का आंसू पोंछकर
खुद क्यों आंसू पियोगी
कहना बहुत है आसान रहना भूखों
पर पेट की ज्वाला देती है झुलसा
सारी मान मर्यादा
फिर मैं क्यों अपनी अमावास से
दुसरे का उजाला छीनूँ
मैं जीता था पहले जैसे
वैसे ही अब जिऊंगा
फिर से हर पल
मौत से बातें करूँगा
निराशा और गम के साँसें भरूँगा
मज़बूरी और गरीबी का नाम जपूँगा
जिल्लत और दुत्कार से पेट भरूँगा
बसंत के दस साल गुजार लिए
बहुत कम काटने को है अब बचा
मरना तो है ही एक दिन
फिर क्यों एक पल भी
जीने की आशा करूँगा
तुम खुश रहो सदा
हर ख़ुशी है तुम्हारे लिए
छोड़ दो सारे गम आंसुओं को
हमारे लिए !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 01-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012
166 . आँचल से क्यों पार किया
166 .
आँचल से क्यों पार किया
मुझ परदेशी का प्यार
बसंत की कितनी रातें
आ रही हैं जा रही हैं
पर लगता है तुम न आ पाओगी
न मैं शायद आ पाऊंगा
किस आग में तूने झोंक दिया
न जल कर मैं मर पाया
न चैन से जी पाता
पर हर याद से फफोले उठ जाते हैं
रातों को ये रिसता है
यादों से जब रिश्ता जुटता है
अब कुछ तुम ही करो
कमल बन कर भौंरे को बंद कर लो
अब एक पल भी तेरे आगोश के बिना
जीना हो गया है दुश्वार
सब दीवारों को तोड़ कर
आओ हो जायें एक
दुनिया के उस पार
आओ बनायें एक नया संसार !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 28-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
आँचल से क्यों पार किया
मुझ परदेशी का प्यार
बसंत की कितनी रातें
आ रही हैं जा रही हैं
पर लगता है तुम न आ पाओगी
न मैं शायद आ पाऊंगा
किस आग में तूने झोंक दिया
न जल कर मैं मर पाया
न चैन से जी पाता
पर हर याद से फफोले उठ जाते हैं
रातों को ये रिसता है
यादों से जब रिश्ता जुटता है
अब कुछ तुम ही करो
कमल बन कर भौंरे को बंद कर लो
अब एक पल भी तेरे आगोश के बिना
जीना हो गया है दुश्वार
सब दीवारों को तोड़ कर
आओ हो जायें एक
दुनिया के उस पार
आओ बनायें एक नया संसार !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 28-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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