सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

169 . ख्वाबों की दुनियाँ

169 . 

ख्वाबों की दुनियाँ 
एक हम और एक तुम हैं 
एक छोटा सा बंगला है 
सामने समुद्र की लहरें हैं 
और एक छोटी सी कार है 
छोटी सी एक फुलवाड़ी है 
जिसमें फूल हैं अनेक 
थोड़ा सा बैंक बैलेंस है 
घर में एक नौकर है 
इस दुनियाँ का 
मैं राजा और तूँ मेरी रानी है 
अब 
दृश्य बदलता है 
किलकारियाँ गूँज उठती हैं 
हम दो से तीन होते हैं 
समय गुजरता चला जाता है 
वो बढ़ता है खूब पढता है 
होकर बड़ा अफसर बनता है 
बालों से हम सफ़ेद हो रहे हैं 
पर तुम उतनी ही सुन्दर हो 
हमारे मिलन की 
25वीं सालगिरह है 
एक सुन्दर सी राजकुमारी आ गयी 
अपने लड़के सुधाकर ने 
किया बड़ा नाम है 
हम दोनों का उसने 
किया बड़ा नाम है 
और अब दृश्य बदलता है 
हम पोती को तुम पोते को 
गोद में खिलाते हैं 
अब आया वो भी समय 
तुम ने मुझसे चिर विदा ले ली है 
अगले जन्म में मिलने का वादा कर
और मैं इसी जन्म में 
ना जाने कितनी बार मरता रहा 
मेरे इस जीने से तो मौत ही भली है 
अच्छा अब ये जीना लगता नहीं है 
पर कैसी ये मज़बूरी है 
मौत भी मिलती नहीं है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '    11-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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