सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

162 . दिल के हाथों हो के मजबूर

162 .

दिल के हाथों हो के मजबूर 
मैंने दर्द लिया देखो 
दर्द मिला खुशियाँ पायी 
कैसा दर्द लिया देखो 
अनमोल रतन धन पाया 
जैसे ही तूने कहा 
मैं तुमको हूँ भाया 
मैं कह नहीं सकता 
मुझे सुख मिला कितना 
दर्द मिला खुशियाँ पायी 
अनमोल रतन धन पाया 
शुष्क ओठों की फड़कन 
मैंने तुमने चुराली है 
ले ली है हमने 
तेरे खट्टे मीठे गालों का चुम्बन 
अंग - अंग तेरे 
मैंने तुमने हैं चूमें 
बस गयी है उमंग 
अंग - अंग में मेरे 
तरपन मिलन की है कितनी 
दर्द दुरी की है कितनी 
लग जा गले मेरे 
बस कर तूँ इतनी 
दूर रहकर अब 
जी न पायेंगें हम 
पल - पल मेरी नजरें 
राह तेरी देखें 
बढ़ा दी है तूने मेरी प्यास 
आके बुझा दे ये आग 
रह न पाऊंगा अब मैं 
जब तक न हो 
तूँ मेरे ही आस पास 
तूँ तो सह लेगी बहुत  
मैं ही सह न पाऊंगा कुछ 
बार - बार मैंने टोका 
छोड़ दे मुझको 
मैं हूँ बहुत तुच्छ 
फिर भी न मानी तूँ 
अब समझ तूँ ही सब कुछ 
मुझको न देना दोष 
हो जाए गर मुझसे कोई भूल 
दिन हो चाहे हो रात 
हरदम सताती है तेरी याद 
तेरी प्यारी - प्यारी रस भरी बात 
अपनी प्यार की पहली मुलाकात की रात !

सुधीर कुमार ' सवेरा '   14-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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