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उम्रभर जिन्होंने न मुझको समझा
आये हैं आज वो समझाने
गुलशन से दिल भर गया अपना
अब अच्छे लगते हैं विराने
अब अफसानों में दिल लगता नहीं अपना
कुछ थे ही ऐसे अपने फ़साने
हरपल हम उनको ढूंढते फिरते
कब मिले वो हमसे खुदा जाने
आये हैं वो पूछने हाल जरा
जब चले हैं लोग मुझे दफ़नाने !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
उम्रभर जिन्होंने न मुझको समझा
आये हैं आज वो समझाने
गुलशन से दिल भर गया अपना
अब अच्छे लगते हैं विराने
अब अफसानों में दिल लगता नहीं अपना
कुछ थे ही ऐसे अपने फ़साने
हरपल हम उनको ढूंढते फिरते
कब मिले वो हमसे खुदा जाने
आये हैं वो पूछने हाल जरा
जब चले हैं लोग मुझे दफ़नाने !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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