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दो चार जख्म खाया हूँ
तो आज आठ - आठ आंसू बहाया हूँ
सोंचा था बहुत समझदार हूँ
तो आज मालुम हुआ
मैं बेहद कायर हूँ
गैरत ही जब नहीं पास मेरे
क्यों मुझ से प्यार किया ?
गर थी यह तेरी कोई मज़बूरी
तो जाओ तुम्हे आजाद किया
मैं सह लेता हूँ सब कुछ
पर अपनों के शब्द नहीं सह सकता हूँ
सह लेता तेरे थप्पड़ भी
जी लेता तेरे नफ़रत से भी
पर गर्व है तुझे जिन शब्दों पर
वो ही मैं सह नहीं सकता हूँ
जब स्वाभिमान ही नहीं पास मेरे
तो क्यों मुझ से प्यार किया
जाओ तुझे आजाद किया
जीने की आकाँक्षा
मर चुकी थी पहले ही
मिलकर तूने शायद
कुछ क्षण के लिए लौ बढाया
थी नहीं तमन्ना कोई
बनी भी तो अब दफ़न किया
इज्जत नहीं पास जिसके
क्यों मुझ से प्यार किया
थी गर कोई मज़बूरी
तो जाओ तुझे आजाद किया
एक बात समझ लो तुम भी
हर बिमारी की जड़ है गरीबी
और गरीबी से हूँ मैं त्रस्त
कभी भी हो सकता है
मेरे जीवन सूर्य का अस्त
फिर क्यों मुझ से प्यार किया
नहीं चूका पाऊँगा एहसान तेरा
जो ही क्षण तूने जिलाया
मत बहो कोरी भावना में
इस हेतु यथार्थ से परिचय करवाया
मेरे जिंदी मौत पे
मत कभी दुःखी होना
जो था मेरा वही तूने वापस किया
तुम अपने को वज्र कहती हो
पर मैं बहुत कोमल हूँ
मैं बहुत कुछ सह लेता हूँ
पर अपनों के शब्द नहीं सह पाता हूँ
मेरे जमीर को जगा कर
तूने बहुत बड़ा काम किया
कहता हूँ तेरे भले के लिए
मेरे हर लेख को मिटा दो
तेरे भविष्य के लिए
ऐसा न हो मैं काला धब्बा बन जाऊं
तेरे जमीर के लिए
जान बुझ कर पाँव में कुल्हारी मारना
तुझ जैसे समझदार को शोभा नहीं देता
जानकर यथार्थ को
मुझ जैसे को ठुकराना कोई पाप नहीं होगा
मुझे झुलस - झुलस कर जीने की आदत है
पर खुद को मत झुलसाओ
आजाद हो तुम
अपना नया संसार बनाओ
मुझ अभागे का आंसू पोंछकर
खुद क्यों आंसू पियोगी
कहना बहुत है आसान रहना भूखों
पर पेट की ज्वाला देती है झुलसा
सारी मान मर्यादा
फिर मैं क्यों अपनी अमावास से
दुसरे का उजाला छीनूँ
मैं जीता था पहले जैसे
वैसे ही अब जिऊंगा
फिर से हर पल
मौत से बातें करूँगा
निराशा और गम के साँसें भरूँगा
मज़बूरी और गरीबी का नाम जपूँगा
जिल्लत और दुत्कार से पेट भरूँगा
बसंत के दस साल गुजार लिए
बहुत कम काटने को है अब बचा
मरना तो है ही एक दिन
फिर क्यों एक पल भी
जीने की आशा करूँगा
तुम खुश रहो सदा
हर ख़ुशी है तुम्हारे लिए
छोड़ दो सारे गम आंसुओं को
हमारे लिए !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 01-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
दो चार जख्म खाया हूँ
तो आज आठ - आठ आंसू बहाया हूँ
सोंचा था बहुत समझदार हूँ
तो आज मालुम हुआ
मैं बेहद कायर हूँ
गैरत ही जब नहीं पास मेरे
क्यों मुझ से प्यार किया ?
गर थी यह तेरी कोई मज़बूरी
तो जाओ तुम्हे आजाद किया
मैं सह लेता हूँ सब कुछ
पर अपनों के शब्द नहीं सह सकता हूँ
सह लेता तेरे थप्पड़ भी
जी लेता तेरे नफ़रत से भी
पर गर्व है तुझे जिन शब्दों पर
वो ही मैं सह नहीं सकता हूँ
जब स्वाभिमान ही नहीं पास मेरे
तो क्यों मुझ से प्यार किया
जाओ तुझे आजाद किया
जीने की आकाँक्षा
मर चुकी थी पहले ही
मिलकर तूने शायद
कुछ क्षण के लिए लौ बढाया
थी नहीं तमन्ना कोई
बनी भी तो अब दफ़न किया
इज्जत नहीं पास जिसके
क्यों मुझ से प्यार किया
थी गर कोई मज़बूरी
तो जाओ तुझे आजाद किया
एक बात समझ लो तुम भी
हर बिमारी की जड़ है गरीबी
और गरीबी से हूँ मैं त्रस्त
कभी भी हो सकता है
मेरे जीवन सूर्य का अस्त
फिर क्यों मुझ से प्यार किया
नहीं चूका पाऊँगा एहसान तेरा
जो ही क्षण तूने जिलाया
मत बहो कोरी भावना में
इस हेतु यथार्थ से परिचय करवाया
मेरे जिंदी मौत पे
मत कभी दुःखी होना
जो था मेरा वही तूने वापस किया
तुम अपने को वज्र कहती हो
पर मैं बहुत कोमल हूँ
मैं बहुत कुछ सह लेता हूँ
पर अपनों के शब्द नहीं सह पाता हूँ
मेरे जमीर को जगा कर
तूने बहुत बड़ा काम किया
कहता हूँ तेरे भले के लिए
मेरे हर लेख को मिटा दो
तेरे भविष्य के लिए
ऐसा न हो मैं काला धब्बा बन जाऊं
तेरे जमीर के लिए
जान बुझ कर पाँव में कुल्हारी मारना
तुझ जैसे समझदार को शोभा नहीं देता
जानकर यथार्थ को
मुझ जैसे को ठुकराना कोई पाप नहीं होगा
मुझे झुलस - झुलस कर जीने की आदत है
पर खुद को मत झुलसाओ
आजाद हो तुम
अपना नया संसार बनाओ
मुझ अभागे का आंसू पोंछकर
खुद क्यों आंसू पियोगी
कहना बहुत है आसान रहना भूखों
पर पेट की ज्वाला देती है झुलसा
सारी मान मर्यादा
फिर मैं क्यों अपनी अमावास से
दुसरे का उजाला छीनूँ
मैं जीता था पहले जैसे
वैसे ही अब जिऊंगा
फिर से हर पल
मौत से बातें करूँगा
निराशा और गम के साँसें भरूँगा
मज़बूरी और गरीबी का नाम जपूँगा
जिल्लत और दुत्कार से पेट भरूँगा
बसंत के दस साल गुजार लिए
बहुत कम काटने को है अब बचा
मरना तो है ही एक दिन
फिर क्यों एक पल भी
जीने की आशा करूँगा
तुम खुश रहो सदा
हर ख़ुशी है तुम्हारे लिए
छोड़ दो सारे गम आंसुओं को
हमारे लिए !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 01-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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