मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

156 . न दिल माँगा न जान मांगी

156 . 

न दिल माँगा न जान मांगी 
न माँगा है न मांगूंगा 
बस तेरी प्रीत चाही 
न अधिकार जताया न फरियाद की 
फिर भी न जाने क्यों 
इस दिल ने तुझे ही याद किया 
सोंच कर ही 
है तुझ से मिलना 
दिल मेरा बल्लियों उछलने लगा 
लगा फिर से एक बार ऐसा 
इस जीवन को भी है जीना 
लगता है न थी 
कोई और तमन्ना 
मेरी दुआयें साथ हैं तेरे 
हरदम खुश रह 
युग - युग जीना 
मैं हूँ इतना कायर कमजोर 
कभी न कह पाऊंगा 
तुझको अपनी ठौर 
न जाने क्यों 
बार - बार ऐसा है लगता 
तूँ  है मेरी मैं हूँ तेरा 
न जाने इस दिल ने 
क्यों तुझको ही पसंद किया 
अब तेरे ही कल्पना के सहारे
मुझको है ये जीवन जीना !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  27-09-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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