168 .
जन्म लेना बनकर इन्सान
होता नहीं इतना आसान
बहुत सुकर्मों के उपरांत
पाता यह नर तन है
नारायण भी रहते हैं
जिसके लिए सदा तरसते
सबकुछ पाकर भी वे
दैहिक सुख नहीं पा सकते
पाकर इतना अनमोल धन
व्यर्थ करती हो कलुषित मन
भोगों की है यह नगरी
भोगोगे तुम भी आज ये वचन दो
आत्महत्या जैसी इक्षा
करते हैं बुजदिल इन्सान ही
हर आघातों को हँस कर
सहने से ही इन्सान बनता है महान
करो कल्पना हर पल
एक नए नूतन नव विहान की
हर पल उत्तमता की करो आशा
आशाओं पर ही है जिन्दगी इन्सान की
मुझे दे दो वो हँसी की फुलझड़ी
थी जो तूँ हर पल बिखेरती
मुझे दे दो वो नटखट युवती
जो थी चंचल शोख बड़ी
मुझे लौटा दो वो चुलबुल चितवन
जो थी तेरे चेहरे पर जड़ी
मुझ से करो जिद हर बात की
जो थी तेरी आदत पड़ी
मुझे लौटा दो वो युवती
जो थी हरदम हँसती हँसाती
दुःख थे जिसके ठोकरों में
लौटा दो मेरी वो चिर - परिचित
मेरी अपनी मेरी प्रीत
तोड़ दो उन बंधनों को
जो तेरी आत्मा का हनन करते
तोड़ दो उन बेड़ियों को
जो बेड़ी बन कर तुझे जकड़ते
भुला दो उन रिश्तों को
जो तेरे सत्य के आड़े आते
न कहने की नींव डालो
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
अत्याचार के खिलाफ
आवाज दो आवाज दो
तुम आजाद हो
तुम इन्सान हो
तुम्हे अधिकार है
अपनी इक्षा के अनुकूल जीने का
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
छेड़ो जेहाद
कसमों को न तोड़ने की
खाओ कसमे
तुम जिओगी अपने ढंग से
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
हम आजाद हैं
हमें जीना है
हम इन्सान हैं
हम आजाद हैं
हमारी अपनी ख़ुशी है
हमारी अपनी जिन्दगी है
नाचेंगे गायेंगे
खुशियाँ मनायेंगे
हम इन्सान हैं
हम आजाद हैं
तुम आजाद हो
आओ आओ
बाहें पसारे
खुशहाली तेरे दर पे
है कब से खड़ी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 06-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
जन्म लेना बनकर इन्सान
होता नहीं इतना आसान
बहुत सुकर्मों के उपरांत
पाता यह नर तन है
नारायण भी रहते हैं
जिसके लिए सदा तरसते
सबकुछ पाकर भी वे
दैहिक सुख नहीं पा सकते
पाकर इतना अनमोल धन
व्यर्थ करती हो कलुषित मन
भोगों की है यह नगरी
भोगोगे तुम भी आज ये वचन दो
आत्महत्या जैसी इक्षा
करते हैं बुजदिल इन्सान ही
हर आघातों को हँस कर
सहने से ही इन्सान बनता है महान
करो कल्पना हर पल
एक नए नूतन नव विहान की
हर पल उत्तमता की करो आशा
आशाओं पर ही है जिन्दगी इन्सान की
मुझे दे दो वो हँसी की फुलझड़ी
थी जो तूँ हर पल बिखेरती
मुझे दे दो वो नटखट युवती
जो थी चंचल शोख बड़ी
मुझे लौटा दो वो चुलबुल चितवन
जो थी तेरे चेहरे पर जड़ी
मुझ से करो जिद हर बात की
जो थी तेरी आदत पड़ी
मुझे लौटा दो वो युवती
जो थी हरदम हँसती हँसाती
दुःख थे जिसके ठोकरों में
लौटा दो मेरी वो चिर - परिचित
मेरी अपनी मेरी प्रीत
तोड़ दो उन बंधनों को
जो तेरी आत्मा का हनन करते
तोड़ दो उन बेड़ियों को
जो बेड़ी बन कर तुझे जकड़ते
भुला दो उन रिश्तों को
जो तेरे सत्य के आड़े आते
न कहने की नींव डालो
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
अत्याचार के खिलाफ
आवाज दो आवाज दो
तुम आजाद हो
तुम इन्सान हो
तुम्हे अधिकार है
अपनी इक्षा के अनुकूल जीने का
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
छेड़ो जेहाद
कसमों को न तोड़ने की
खाओ कसमे
तुम जिओगी अपने ढंग से
तुम इन्सान हो
तुम आजाद हो
हम आजाद हैं
हमें जीना है
हम इन्सान हैं
हम आजाद हैं
हमारी अपनी ख़ुशी है
हमारी अपनी जिन्दगी है
नाचेंगे गायेंगे
खुशियाँ मनायेंगे
हम इन्सान हैं
हम आजाद हैं
तुम आजाद हो
आओ आओ
बाहें पसारे
खुशहाली तेरे दर पे
है कब से खड़ी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 06-11-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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