163 .
दुनियाँ वालों छोड़ दो मुझको
मैं हूँ अकेला
गम का मारा
जिसने चाहा
उसने रुलाया
दिल से खेला
और खूब सताया
जी भरकर
मुझको दुखाया
दे दी यातना
दे सका जितना
निचोड़ा हुआ निम्बुं
बन कर रह गया हूँ मैं
दिल पर फफोले उठ रहे कितने
दुनियाँ वालों छोड़ दो मुझको
हंसों जितना
पर नमक न छिड़को
मैं हँसता था
हँसता ही रहता
गर तेरा प्यार
बिच में न आता
प्यार मिला
और उपेक्षा पायी
ऐसे लगा
जैसे जहर ही खाई
इससे पहले ही
जो मर जाता
तुझ पे थोड़ा कम
खुद पे इतना
गुस्सा न आता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 16-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
दुनियाँ वालों छोड़ दो मुझको
मैं हूँ अकेला
गम का मारा
जिसने चाहा
उसने रुलाया
दिल से खेला
और खूब सताया
जी भरकर
मुझको दुखाया
दे दी यातना
दे सका जितना
निचोड़ा हुआ निम्बुं
बन कर रह गया हूँ मैं
दिल पर फफोले उठ रहे कितने
दुनियाँ वालों छोड़ दो मुझको
हंसों जितना
पर नमक न छिड़को
मैं हँसता था
हँसता ही रहता
गर तेरा प्यार
बिच में न आता
प्यार मिला
और उपेक्षा पायी
ऐसे लगा
जैसे जहर ही खाई
इससे पहले ही
जो मर जाता
तुझ पे थोड़ा कम
खुद पे इतना
गुस्सा न आता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 16-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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