शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

620 . श्रीतारा - लम्ब उदर अति खर्व भीम तनु द्विप अजनि कटि देशा।


                                      ६२० 
                                   श्रीतारा
लम्ब उदर अति खर्व भीम तनु द्विप अजनि कटि देशा। 
अस्ति चारि षट ता बिच खप्पर बाल भयानक केशा।।
एक चरण अपर चरण लस से सित पंकज वासी। 
अति मृदुहास भास नव यौवन लखि रूचि सम भासी।।
दक्षिण बाहु दुइ षङग कत्तृ लस रिपु शिर उत्पल वामे। 
भुवि अक्षोभ्य भाल पर शोभित लहलह रसन सुकामे।।
प्रात समय रवि बिम्ब त्रिलोचन दन्तुर दन्त विकासे। 
ज्वलित चिता चौदिश धहधह करू ततय देवि तुअ वासे।।
पिंडल जटाजूट शिर शोभित वेदबाहु अति भीमा। 
अनुपम चरित चकित सुर नर मुनि के कहि सक तुअ सीमा। 
रत्नपाणि भन तुअ पद सेवक तारणि सुनु अवसेषे। 
श्रीमिथिलेशक सतत करिअ शुभ ताहि न करिअ विसेशे।।
( तत्रैव )

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016

619 . श्रीकालिका - जय जगजननि ज्योति तुअ जगभरि , दक्षिण पद युत नामे।


                                      ६१९ 
                               श्रीकालिका 
जय जगजननि ज्योति तुअ जगभरि , दक्षिण पद युत नामे। 
अति धुति पीन पयोधर उन्नत सजल जलद अभिरामे।।
विकट दशन अति वदन भयानक फूजल मंजुल केशा। 
शोणित भय रसना अति लहलह श्रीकवयस्त्रिक देशा।।
तीन नयन अति भीम राव तुअ अस दुइ कुण्डल काने। 
शवकर काटि सघन पाती कय चौदिश करि परिधाने।।
मुण्डलमाल उर चारि भुजा तुअ खड्ग मुण्ड दुहु वामे। 
दक्षिण कर वर अभय विराजित गगन वसन बसु जामे।।
शिव शव रूप दरश तुअ पदयुग सदा वास शमशाने। 
फेरव रवकर चौदिश शोभित योगिनि गण परिधाने।।
रत्नपाणि भन अपरूप तुअ गति के लखि सक जगमाता।।
मिथिलापतिक मनोरथ दायिनि सचकित हरिहर धाता।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) रत्नपाणि  

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016

618 . जै जै कमला विमल तुअ वारि। विधु भगिनी जे उदधि कुमारि।।


                                      ६१८
                                   कमला  
जै जै कमला विमल तुअ वारि। विधु भगिनी जे उदधि कुमारि।।
फोड़ि पहाड़ धार वह नीर। दरस परस जल हर सभ पीर।।
ताल सरोवर खण्डन कारी।  ----------------------------
( तत्रैव )

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

617 . श्री दुर्गा - जै जै दुर्गा दुर्ग प्रताप। तुअ भुजबल डर दानव काप।।


                                       ६१७
                                   श्री दुर्गा  
जै जै दुर्गा दुर्ग प्रताप। तुअ भुजबल डर दानव काप।।
सिंह चढ़लि कर लेल कृपाण। कोपि चलल रण रूप भयान।।
दानव दल दलि कैल ओरान। पिउल रुधिर नहि भेल अघान।।
रसन पसार दसन विकराल। ऐसन अरिदल कैल हत काल।।
चण्ड मुण्ड रन खण्डल डारी। शुम्भ - निशुम्भ जुगल रण मारी।।
महिष असुर रण कैल प्रकोप। ताहि निपाति कएल आलोप।।
असुर निपाति सुरहि सुख देल। तुअ रणविजय विदित जग भेल।।
कान्हाराम भन गोचर बानी। सदा सभा शुभ करिय भवानी।।
( गौरी स्वयंवर नाटिका )   कान्हाराम

बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

616 . भारती - जय जय भारति भगवति देवि। छने मुदित रहु तुअ पद सेवि।।


                                      ६१६
                                    भारती  
जय जय भारति भगवति देवि। छने मुदित रहु तुअ पद सेवि।।
चन्द्र धवल रूचि देह विकास।श्वेत कमल पर करहु निवास।।
विणारव रसिता वर नारि। सदत मगन गिरिराज कुमारि।।
जन्म मरण नहि तोहि भवानि। त्रिदश दास तब त्रिगुणा जानि।।
अरुण अधर बंधूक समान। तीनि नयन विद्या वरदान।।
गोकुल असुत सविनय मान। देहु परम पद दायक जान।।
( तत्रैव ) गोकुलानन्द   

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

615 .दुर्गा - जय जय दुर्गे जगत जननी। दुर कर भव भए होह दहिनी।।


                                         ६१५
                                         दुर्गा
जय जय दुर्गे जगत जननी। दुर कर भव भए होह दहिनी।।
खने नील खने सित निरमान। खन कुंकुम पंगक तनु अनुमान।।
राका विधुमुख नवविधु मराल। रक्त नयन सोभ केश कराल।।
लोहित रदन लोहित कर पान। भुकुटि कुटिल पुनि मोन धेआन।।
श्रुति भजें दस भूजें हर दुःख मोर। ऋषीहि पुरान गनल भुज तोर।।
करे वर अभय खड्ग जपमाल। मुकुर शूलधनु खेटक विशाल।।
न जानिअ आगमे तुअ कत रूप। तेतिस कोटि देव तोहि निरूप।।
पुनि पुनि होइहो देवि गोचर लैह। नाग पास बन्धन मोक्ष दैह।।
आनन्दे देवाबन्द नति गाव। हरि चढ़ि रिपु हनि पुरह भाव।।
( हिस्ट्री ऑफ़ मैथिलि लिटरेचर ) देवानन्द  

सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

614 . गौरी - जय हरिगमनी जय हरिगमनी देधु अभयवर हर रमनी।


                                      ६१४
                                      गौरी 
जय हरिगमनी जय हरिगमनी देधु अभयवर हर रमनी। 
अति विकराल कपाल भाल मृग शोभित कच तट झलक मनी। 
लम्बित कच तर छपित छपाकर भुज पर भूषण भुजंग फनी।  
खप्पर वर करबाल ललित कर शुम्भ निशुम्भ दम्भवनी। 
रिपु भट विकट निकट झटपट कय धय पटकल चटपट अवनी। 
कुपित वदन पर नयन विराजित अरुण अरुण युग कमल सनी। 
लह लह रसन दसन दाड़िमबिज निज गण जनमल दुःख समनी। 
सुर नर मुनि हरखित सब सुनि हरि हर घर के तोहर सनी। 
रक्तबीज महिषासुर हारल असुर संहारल समर धनी। 
हमर कुमति तुअ पद पय गति बिसरिय जनु मोहि एको छनी। 
जगत जननि पद पंकज मधुकर सरस सुकवि यह लाल भनी। 
( गौरी स्वयंवर ) लालकवि 

रविवार, 16 अक्टूबर 2016

613 . जय देवी गौरि - मृगेंद्र गामिनि।रुचिर तनु रूचि विजित दामिनि।।


                                    ६१३
जय देवी गौरि - मृगेंद्र गामिनि।रुचिर तनु रूचि विजित दामिनि।।
दुरित खंडिअ दिवस यामिनि। शम्भूकामिनि हे।।
कइए तुअ पदकमल सेवा। निज मनोरथ सकल लेबा।।
सेबि दुरगत रहल केबा। मनुज देबा हे।।
गन्ध अक्षत कुसुम पानी। हमें निवेदिअ जत भवानी।।
लिअ सकल परिवार आनी। भगति जानी हे। 
सदय लोचने मोहि निहारिअ। तोरित आपद सवे विदारिअ।।
अपन किंकर गनि विचारिअ। रिपु संचारिअ हे।।
बिसरि मने अपराध अछि जत। भइए परसनि पुरिय अभिमत।।
भन रमापति कए प्रणति सत। चरन अनुगत हे।।
( तत्रैव )

  

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

612 .प्रनमों भगवति पद अरविन्द। मानस हमर करिअ सानन्द।।


                                     ६१२
प्रनमों भगवति पद अरविन्द। मानस हमर करिअ सानन्द।।
जइओ सतत तुअ भगति विहीन। तइओ न उचित रहिअ हम दिन।।
जयों कर तनय सहस अपराध। न कर जननि परिपालन बाघ।।
जदि तेजिअ मोहि पर - सुत जानि। जग जननी - पद तएह हानि।।
अञ्जलि बाँधि निवेदिअ तोहि। हर गेहिनि परसनि रहु मोहि।।
तुअ पद प्रणत रमापति भान। पतक हरिअ करिअ वरदान।।
( तत्रैव )

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

611 . त्रिपुरेश्वरी - जय जय त्रिभुवनतारिणि देवी। सब अभिमत पुर तुअ पद सेवि।।


                                       ६११
                                  त्रिपुरेश्वरी 
जय जय त्रिभुवनतारिणि देवी। सब अभिमत पुर तुअ पद सेवि।।
जुटक बाँध जटा धरु एक। तीनि नयन लोहित अतिरेक।। 
सिर सोभे अनुपम पञ्च कपाल। ससधर तिलक विराजित भाल।।
विकट दसन अति - रसन अधीर। फणिमय भूषण खरब सरीर।।
खरग काँति धरु दहिना हाथ। वामा इन्दीबर नर माथ।।
नव यौवन उर पर मुण्डमाल। लम्बोदरि पहिरन बघछाल।।
चौंदिस सतत फेरु कर सोर। चितिचय बास हास अतिघोर।।
प्रनत रमापति कह जग जोहि। सब - बहिनि दाहिनि रहु मोहि।।
( रुक्मिणी - परिणय नाटक ) रमापति 

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2016

610 . श्रीछिन्नमस्ता - जय जय जय प्रचण्ड चण्डिके आदि शक्ति तुअ काली।


                                      ६१० 
                             श्रीछिन्नमस्ता 
जय जय जय प्रचण्ड चण्डिके आदि शक्ति तुअ काली।
ब्रह्म विष्णु शिव सकल भुवन भरि तुअ सिरजल ब्रह्माणी।।
अष्टदल कमल उपर रविमण्डल तापर त्रिगुण सुरेखी। 
तापर रति विचरित मनमध कर तापर पद तुअ पेखी।।
लहलह रसन दसन अति चञ्चल विकट वदन विकराला। 
पीन पयोधर ऊपर राजित उरग हार मुण्डमाला।।
उत्तम अंग बह वाम पाणिकै दहिन कल्प धरि कांती। 
निज गल उछिल लिधुर मधुरिम छुबि जीविअ भलभाँती।।
योगिन युगल पास दुइ पोसल अरुण तरुण घनश्यामा। 
तीनि नयन तुअ जोति जगत भरि सहस्र भानु अभिरामा।।
भाव भक्ति वर दिअ परमेश्वरि भुक्ति मुक्ति वरदाने। 
हिमगिरि कुमरि चरण ह्रदय धरि सुमति उमापति भाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश )  

बुधवार, 12 अक्टूबर 2016

609 . जय जय मधुकैटभ अर्दिनी ! जय जय महिषासुर मर्दिनी।।


                                         ६०९ 
जय जय मधुकैटभ अर्दिनी ! जय जय महिषासुर मर्दिनी।।
घूसरनयन भस्म मण्डिनी ! चण्ड मुण्ड शिर खण्डिनी।।
रक्तबीजासुर संहारिणि ! शुम्भ निशुम्भ ह्रदय - दारिणि।।
सभ सुर शक्ति रूप धारिणि। सेवक सबहुक उपकारिणि।।
अनुपम रूप सिंहवाहिनि। सबहिं समय रहिहह दाहिनि।।
सुमित उमापति आशिष वाली। सकल सभा जय करथु भवानी।।
( पारिजातहरण नाटक ) उमापति    

शनिवार, 8 अक्टूबर 2016

608 . श्रीराधा


                                     ६०८ 
                                 श्रीराधा 
जयति जय वृषभानु नन्दिनी श्याममोहिनि राधिके। 
कनक शतवान कान्त कलेवर किरण जित कमलाधिके।।
सहज भंगिनि बिजुरि कत जिनि काम कत शत मोहिते। 
ज़ेहनी फणि  बन वेणि लम्बित कबरि मालति शोभिते।।
अंजन यंजन नयन रंजन वदन कत इन्दु नन्दिते। 
मन्द आज हांसि कुन्द परकासि बिजुरि कत शत झलकिते।।
रतन मन्दिर माँझ सुन्दरि वसन आध मुख झाँपियो। 
दास गोबिन्ददास प्रेम सागर सैह चरण समाधियो।।
( गोविन्द गीतांजलि )  गोबिन्ददास

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016

607 . चञ्चल मन सुमिरह वैदेही !


                                     ६०७
चञ्चल मन सुमिरह वैदेही ! 
सबे परिहरि सिय चरन सरन जेहि आवागमन होए नहि तेही। 
कोटि कोटि ब्रह्माण्ड के रानी तासें मुगुध नेह करि लेही। 
शिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक चरन सरन रज चाहत जेही। 
साहेब भजहु भरम तेजि द्रिढ भे आखिर भसम होइहैं देही।।
( तत्रैव )

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2016

606 . श्रीसीता


                                      ६०६ 
                                  श्रीसीता 
जनकलली महिमा गुन भारी !
चिन्तित कमल चरण ब्रह्मादिक परिहरि ह्रदय पदारथ चारी।।
शुक सनकादि चरण रज चाहत ध्यान धरत मुनि कानन झारी।।
शेष गनेस निगम गुन गावत भजत समाधि लाए त्रिपुरारी।।
जीवन जन्म सुफल तोहि साहेब जे जन जगत भगति अधिकारी।।
( साहेबरामदास गीतावली ) साहेबरामदास 

बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

605 . प्रणमयों प्रणत कल्पतरू रूप। देख मुनि बालहिं अलष सरूप।।


                                  ६०५ 
प्रणमयों प्रणत कल्पतरू रूप। देख मुनि बालहिं अलष सरूप।।
आशा सरित संतारण सेतु। सुख सारथ पुरुषारथ हेतु।।
मांगओ माए माहेश्वरि एह। अभिनव अभिनव यश मह देह। 
हर वरतनु अनुचर भन राम। पुरिअ सुन्दर नरपति काम।।
( आनन्दविजय नाटिका ) रामदास 

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016

604 . कालिका


                                     ६०४ 
                                   कालिका 
जै कालिका स्वर्गधारिनि मत्त गजवर गामिनी। 
चिकुर चामर चन्दन तिलक चान सुमांगनी।।
कनक कुण्डल गंड मण्डित संग नाच पिशाचनी। 
भौह भ्रमर कमान साजिल दसन जगमग दामिनी। 
अधर लाल विशाल लोचन शोक मोचनि शूलिनी। 
विकट आनन् अति भयावनि हाथ खप्पर धारिनी।।
योगिनी गण यूथ खलखल नाच - नाच पिशाचनी। 
श्याम तनु अभिराम सुन्दर बाज रुनझुनु किंकिनी।।
जंध केदलि अंग कुन्तल पाद पदम विभूषणी। 
करजोरि जैकृष्ण करत गोचर शम्भुवाहिनि दाहिनी। 
हरषि हेरिअ तोहि शंकरि त्वरित दुःख निवारिणी।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) जयकृष्ण 

सोमवार, 3 अक्टूबर 2016

603 .भगवती गीत


                                   ६०३ 
                             भगवती गीत 
नील वरनी शम्भु घरनी छिरिक छवि जनु दामिनी। 
पाय नुपुर रजत किंकिणि सुनत सुर नर मोहिनी।।
कठिन खरगहिं लिये दुर्गे स्रवन झलकत टंकनी। 
अरुण नैना हसत वैना संग कोटिस योगिनी।।
चन्द्र भाल भुजंग भूषित करहु असुर निखंडिनी। 
विन्ध्यवासिनि होउ दाहिनि सुनहु हे भव पारनी।।
भूप से द्विपनाथ सुत देवनाथ सहित निवासनी।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) देवनाथ 

रविवार, 2 अक्टूबर 2016

602 . भगवती गीत


                                    ६०२ 
                            भगवती गीत 
जागहु हे जगदम्ब जननि मोरि , हरिए सकल दुख सारे। 
तुअ दरशन बिनु नैन विकल भेल , कखन देखब देवि तारे।।
हम अबला अवलम्ब दोसर नहि , केवल तोहर भरोसे। 
तोहें जगतारिणि  देहु एहो वर , सेवक करहु परोसे।।
हमर विकल मन धान दसो दिसि , की गति होएत मोरे। 
अशरण शरण धयल हम तुअ पद , तोहरे चरण गति मोरे।।
तोहें जगतारिणि  शत्रु संहारिणि , सेवक होउ ने सहाये। 
हरषि हेरिय देवि सुदिष्ट नयन , भरि संकट करिय तराने। 
होउ प्रसन्न देवि पुरहु सकल मन , दीअ अभय वरदाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश )

शनिवार, 1 अक्टूबर 2016

601 . गोसाउनि


                                        ६०१ 
                                   गोसाउनि 
जै जै जै भवसागर तारिणि तीनि भुवन तुहि माता। 
असुर मारि सुरपाल कारिणी भक्त अभयवर दाता।।
काल रूप तुहि काली उतपन सोनित करिय अधारे। 
सगर मेदिनि भरि रुधिर पसारल कैलहुं असुर संघारे।।
लोहित रसन दसन आउर बह लिधुर भुअंगम काया। 
सिंह चढ़लि रण फ़िरथि गोसाउनि करि देवन पर दाया।।
रामनाथ भन सुनिये गोसाउनि मोरा गति नहि आने। 
जन्म जन्म तुअ चरण अराधिअ करिये मनोरथ दाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) रामनाथ