६१६
भारती
जय जय भारति भगवति देवि। छने मुदित रहु तुअ पद सेवि।।
चन्द्र धवल रूचि देह विकास।श्वेत कमल पर करहु निवास।।
विणारव रसिता वर नारि। सदत मगन गिरिराज कुमारि।।
जन्म मरण नहि तोहि भवानि। त्रिदश दास तब त्रिगुणा जानि।।
अरुण अधर बंधूक समान। तीनि नयन विद्या वरदान।।
गोकुल असुत सविनय मान। देहु परम पद दायक जान।।
( तत्रैव ) गोकुलानन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें