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त्रिपुरेश्वरी
जय जय त्रिभुवनतारिणि देवी। सब अभिमत पुर तुअ पद सेवि।।
जुटक बाँध जटा धरु एक। तीनि नयन लोहित अतिरेक।।
सिर सोभे अनुपम पञ्च कपाल। ससधर तिलक विराजित भाल।।
विकट दसन अति - रसन अधीर। फणिमय भूषण खरब सरीर।।
खरग काँति धरु दहिना हाथ। वामा इन्दीबर नर माथ।।
नव यौवन उर पर मुण्डमाल। लम्बोदरि पहिरन बघछाल।।
चौंदिस सतत फेरु कर सोर। चितिचय बास हास अतिघोर।।
प्रनत रमापति कह जग जोहि। सब - बहिनि दाहिनि रहु मोहि।।
( रुक्मिणी - परिणय नाटक ) रमापति
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