ADHURI KAVITA SMRITI
शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016
607 . चञ्चल मन सुमिरह वैदेही !
६०७
चञ्चल मन सुमिरह वैदेही !
सबे परिहरि सिय चरन सरन जेहि आवागमन होए नहि तेही।
कोटि कोटि ब्रह्माण्ड के रानी तासें मुगुध नेह करि लेही।
शिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक चरन सरन रज चाहत जेही।
साहेब भजहु भरम तेजि द्रिढ भे आखिर भसम होइहैं देही।।
( तत्रैव )
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