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श्रीकालिका
जय जगजननि ज्योति तुअ जगभरि , दक्षिण पद युत नामे।
अति धुति पीन पयोधर उन्नत सजल जलद अभिरामे।।
विकट दशन अति वदन भयानक फूजल मंजुल केशा।
शोणित भय रसना अति लहलह श्रीकवयस्त्रिक देशा।।
तीन नयन अति भीम राव तुअ अस दुइ कुण्डल काने।
शवकर काटि सघन पाती कय चौदिश करि परिधाने।।
मुण्डलमाल उर चारि भुजा तुअ खड्ग मुण्ड दुहु वामे।
दक्षिण कर वर अभय विराजित गगन वसन बसु जामे।।
शिव शव रूप दरश तुअ पदयुग सदा वास शमशाने।
फेरव रवकर चौदिश शोभित योगिनि गण परिधाने।।
रत्नपाणि भन अपरूप तुअ गति के लखि सक जगमाता।।
मिथिलापतिक मनोरथ दायिनि सचकित हरिहर धाता।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) रत्नपाणि
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