ADHURI KAVITA SMRITI
बुधवार, 5 अक्तूबर 2016
605 . प्रणमयों प्रणत कल्पतरू रूप। देख मुनि बालहिं अलष सरूप।।
६०५
प्रणमयों प्रणत कल्पतरू रूप। देख मुनि बालहिं अलष सरूप।।
आशा सरित संतारण सेतु। सुख सारथ पुरुषारथ हेतु।।
मांगओ माए माहेश्वरि एह। अभिनव अभिनव यश मह देह।
हर वरतनु अनुचर भन राम। पुरिअ सुन्दर नरपति काम।।
( आनन्दविजय नाटिका ) रामदास
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