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जय देवी गौरि - मृगेंद्र गामिनि।रुचिर तनु रूचि विजित दामिनि।।
दुरित खंडिअ दिवस यामिनि। शम्भूकामिनि हे।।
कइए तुअ पदकमल सेवा। निज मनोरथ सकल लेबा।।
सेबि दुरगत रहल केबा। मनुज देबा हे।।
गन्ध अक्षत कुसुम पानी। हमें निवेदिअ जत भवानी।।
लिअ सकल परिवार आनी। भगति जानी हे।
सदय लोचने मोहि निहारिअ। तोरित आपद सवे विदारिअ।।
अपन किंकर गनि विचारिअ। रिपु संचारिअ हे।।
बिसरि मने अपराध अछि जत। भइए परसनि पुरिय अभिमत।।
भन रमापति कए प्रणति सत। चरन अनुगत हे।।
( तत्रैव )
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