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गोसाउनि
जै जै जै भवसागर तारिणि तीनि भुवन तुहि माता।
असुर मारि सुरपाल कारिणी भक्त अभयवर दाता।।
काल रूप तुहि काली उतपन सोनित करिय अधारे।
सगर मेदिनि भरि रुधिर पसारल कैलहुं असुर संघारे।।
लोहित रसन दसन आउर बह लिधुर भुअंगम काया।
सिंह चढ़लि रण फ़िरथि गोसाउनि करि देवन पर दाया।।
रामनाथ भन सुनिये गोसाउनि मोरा गति नहि आने।
जन्म जन्म तुअ चरण अराधिअ करिये मनोरथ दाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) रामनाथ
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