शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

608 . श्रीराधा


                                     ६०८ 
                                 श्रीराधा 
जयति जय वृषभानु नन्दिनी श्याममोहिनि राधिके। 
कनक शतवान कान्त कलेवर किरण जित कमलाधिके।।
सहज भंगिनि बिजुरि कत जिनि काम कत शत मोहिते। 
ज़ेहनी फणि  बन वेणि लम्बित कबरि मालति शोभिते।।
अंजन यंजन नयन रंजन वदन कत इन्दु नन्दिते। 
मन्द आज हांसि कुन्द परकासि बिजुरि कत शत झलकिते।।
रतन मन्दिर माँझ सुन्दरि वसन आध मुख झाँपियो। 
दास गोबिन्ददास प्रेम सागर सैह चरण समाधियो।।
( गोविन्द गीतांजलि )  गोबिन्ददास

कोई टिप्पणी नहीं: